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श्रावकाचार संग्रह
संशय मिथ्यात्व हवे सुणो ए, भावरूपें सदा होय तो । द्रव्यरूपे किहां उपन्नों ए तेह विचार नु जोय तो ॥७० विक्रम राय चम्प्यां पुरे ए, वरस एक सौ छत्रीस तो । सोरठ देश मां कही ए, विलहण नय निवेस तो ॥७१ पंचम श्रुत केवली हुआ ए, श्री भद्रबाहु गणेन्द्र तो । तत्रासीस शांति सूरी ए, तेह शिष्य जिनचन्द्र तो ॥७२ दुर्भिक्ष दोष ते विभचरा ए, शिथिल थया आचार तो । निजगुरें संबोधीया ए, मानें नहीं गमार तो ॥७३ आपण बुद्धि कल्पना करी ए. श्वेतपट परि थाप तो । कंधे कंबल लाठी करी ए, राखे छिद्र लांबा कान तो ॥७४ पात्र परिग्रह ते ग्रही ए, भिक्षा याचे गेह गेह तो । स्वेच्छापणें भक्षण करी ए, प्रत्याख्यान नहि तेह तो ॥७५ निर्दोष देव दूषण कहे ए, उपजावे संदेह तो ।
बाह्य आभूषण थापना ए, सविकार प्रतिमा देह तो ॥७६ श्री वीरनें दूषण दीइए, ब्राह्मणी उरे अवतार तो । पछें इन्द्र विस्मापिओ ए, गरभ कोयो परिहार तो ॥७७ त्रिशला राणो कूखें वो ए, पछे हृवो गर्भ वृद्धि तो । बाले मेरू कंपावीयो ए, एह वी थापी खोटी बुद्धि तो ॥७८ वीर पाणिग्रहण कहिए, पुत्री तणी उतपत्ति तो ।
वैराग उपजे घर रह्या ए, वरस लगे सनमंत तो ॥७९ दीक्षा लेई ध्यानें रह्या ए, उपसर्ग गोवाल तो । करणां खीला कांनें ठव्या ए, पग पय पाक विशाल तो ॥८०
ध्यान थका कायर हुआ ए, दीन पणें करी बुंबतो । वीर वेदना उपजी घणी ए, एह् वा बोल ज बोल तो ॥८१ केवल ज्ञान उपज्यां पुठे ए, घर घर जावे आहार तो । क्षुधा तृषा राग रोग कह यु ए, रोग कह्यो वली सार तो ॥८२ वीर विगो घणु कह्यो ए, तेसुं कही ए बात तो । कुक्कुट पाक औषध देई ए कीधी रोगनों घात तो ॥८३ संशयमत मां इम कह्यो ए. केवलीनें आहार-निहार तो । प्रासु अन्न जिहा मल्यो ए, ते लीज अविचार तो ॥८४ चउदै उपग्रहण ते ग्रही ए. अवर लिंग जाइ मोक्ष तो । स्त्री सातमी नरकें जाई ए, स्त्रीय लहे शिव - सौख्य तो ॥८५ घोटक गणधर नें कहे ए, मलिन जिन स्त्रीलिंग तो । ग्रही नें मुकतें कही ए, इह वां बोले बहुं विंग तो ॥८६ अस्थि चरम वली आदरथा ए, न वि मानें लौकिक छोत तो । पुष्पवती नारी दोष ए, कहे नहि सूतक प्रसूति तो ॥८७
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