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दौलतराम-कृत क्रियाकोष भाँति भाँतिकी औषधी, भांति भाँतिके चीर । भाँति भाँतिको वस्तु दे. सो जैनो जगवीर ॥५४ दान विधी जु अनन्त है, को लग करें बखान । जानें श्रीजिनरायजू, किह दाता बुधिवान ||५५ भक्ति दया द्वे विधि कही, दानधर्मकी रीति । ते नर अंगीकृत करें, जिनके जैन प्रतीति ।।५६ लक्ष्मी दासी दानकी, दान मुकतिको मूल । दान समान न आन कोउ, जिन मारण अनूकूल ॥५७ अतीचार या ब्रत्तके, तजे पंच परकार । तव पावै ब्रतशुद्धता, लहै धर्म अविकार ।।५८ भोजनकों मुनि आवहीं, तब जो मूढ कदापि । मनमें ऐसी चितवे, दान करंता क्वापि ॥५९ लगि है बेला चूकिहों जगतकाजतें आज । ताते काहूकों कहै, जाय करें जगकाज ॥६० मो बिन काम न होइगो, तातें जानों मोहि । दान करेंगे भातृ-सुत, इहहू कारिज होहि ॥६१ घनको जाने सार जो, धर्म न जाने रंच । सो मूढ़नि सिरमौर है, घटमें बहुत प्रपंच ॥६२ कहै भ्रात पुत्रादिको, दानतनों शुभ काम। आप सिधारै जड़मती, जग धंधाके ठाम ।।६३ परदात्री उपदेश यह, दूषण पहलो जानि । पराधीन है या थकी, यह निश्चै उर आनि ॥६४ मुनि सम वैगी धन कहा, इह धारै उर धीर । मुक्ति-मुक्ति दाता मुनि, षटकायनिके वीर ॥६५ पनि सचित्तनिक्षेप है, दूजो दोष अजोगि। ताहि तजें तेई भया, दानवत्तकों जोगि ॥६६ सचित्त वस्तु कदली दला, ढाक पत्र इत्यादि । तिनमें मेलो वस्तु जो, मुनिकों देवो वादि ॥६७ दोष लग ज सचित्तको, मनिके अचित अहार । तातै सचितनिक्षेपको. त्याग करें व्रत धारा ॥६८ तीजी सचितपिधान है, ताहि नजौ गुणवान । कमलपत्र आदिक सचित, तिन करि ढाक्यो धान ॥६९ नहिं देनों मुनिरायको, लगे सचितको दोष । प्रासुक आहारी मुनी. व्रत तप संजम कोष ॥७० काल उलंघन दानको, योग्य होत नहिं दान । सो चौथो दूषण भया त्यागें ते मतिवान ॥७१
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