________________
दौलतराम - कृत क्रियाकोष
जे मुनि रहनेको थाना, बनमें कारहिं मतिवाना । ते पावें शिव सुर थाना, यह सूत्र प्रमाण वखाना ॥ १७ मुनि लेइ अहारइ मित्रा, लघु एक बार कर-पात्रा । जे मुनिकों भोजन देहीं, ते सुरपुर शिवपुर लेहीं ॥१८ जौ लग नहि केवलभावा, तो लग आहार धरावा । केवल उपजें न अहारा, भागें भव-दूषण सारा ॥१९ नहि भूख तृषादि सबै ही, जव केवल ज्ञान फबेही । केवल पायें जिनराजा, केवल पद ले मुनिराजा ॥२० मुनिकी सेवा सुखकारी, बड़भाग करें उरधारी । पुस्तक मुनिपै ले जावें, मुनि सूत्र अर्थ ते आवें ॥२१ ते पावें आतमज्ञाना, ज्ञानहि करि ह्न निरवाना | भेष भोजनमें युक्ता, मुनिकों लखि रोग प्रव्यक्ता ॥२२ देवें ते रोग नसावें, कर्मादिक फेरि न आवें । मुनि उपसर्ग निवारें, ते आतम भवदधि तारें ||२३ मुनिराज समान न दूजा, मुनि पद त्रिभुवन करि पूजा । मुनिराज त्रिवर्णा होणे, शूद्दर नहिं मुनिपद जोवै ॥२४ मुनि आर्या एल महा ए, ह्व े क्षत्री द्विज बणिजा ए । अव मध्यपात्रके भेदा, त्रिविधा सुनि पाप उछेदा ||२५ उतकृष्ट रु मध्य जघन्या, जिनसे नहिं जगमें अन्या । पहली पडिमासों लेई, छुट्टी तक श्रावक जेई ॥२६ मध्यनिमें जघन कहावे, गुरु धर्म देव उर लावे | जे पंचम ठाणें भाई, अणुवृत्ती नाम धराई ॥२७ पहली पड़िमा घर बुद्धा, सम्यक् दरसन गुण शुद्धा । त्यागे जे सातों बिसना, छांडें विषयनिकी तृष्णा ॥२८ जे अष्ट मूल गुण धारें, तजि अभख जीव न संघारें । दूजी पड़िमा धर धीरा, व्रतधारक कहिये वीरा ॥ २९ बारा व्रत पालै जोई, सेवे जिनमारग सोई । जे धारें पंच अणुव्रत, त्रय अणुव्रत चउ शिक्षाव्रत ||३०
चौपाई
तीजी पडिमा धरि मतिवंत, सामायिक में मुनिसे संत । पोसा में आरूढ़ विशाल, सो चौथी पडिमा प्रतिपाल ||३१ पंचम पडिमा धर नर धीर, त्याग सचित्त वस्तु वर वीर । पत्र फूल फल कूंपल आदि, छालि मूल अंकुर वीजादि ॥ ३२ मन वच तन कर नीली हरी, त्यागे उरमें दृढ़ व्रत धरो । जीवदयाको रूप निधान, षट कायाको पीहर जान ||३३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
३२३
www.jainelibrary.org