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________________ दौलतराम-कृत क्रियाकोष मन लावे जिन रूपसों, अथवा जिन-पद माहिं । सो मन-शुद्धि पंचमो, यामें संशय नाहि ॥७९ छट्ठी वचन-विशुद्धता, बिन सामायिक और । वचन कदापि न बोलिये, यह भाषें जगमौर ॥८० काय - शुद्धता सातमी, ताको सुनहु विचार । काय - कुचेष्टा नहि करे, हस्त-पदादिक सार ॥८१ क्षेत्र - प्रमाण कियो जितौ, तजे पापके जोग । मुनि सम निश्चल होयके, करै जाप भविलोक ॥८२ राग द्वेष के त्यागतें, समता सब परि होइ । ममताको परिहार जो, सामायिक है सोइ ||८३ सामायिक अनिशि करें, ते पावें भव- पार । सामायिक सम दूसरो, और न जगमें सार ॥८४ राति दिवस करनों उचित, बहु थिरता नहि होय । त्रिकाल नटारिवौ, यह धारै बुध सोय ॥८५ जो सामायिकके समय, थिरता गहै सुजान । अणुव्रत धारै सो सुधी, तो पनि साधु समान ॥८६ चाल छन्द सामायिक सोनहि मित्रा, दूजो व्रत सोई पवित्रा । गृहपतिको जतिपति तुल्या, करई इह व्रत जु अतुल्या ॥८७ तसु अतीचार तजि पंचा, जब होइ सामायिक संचा । मन वच तन दुःप्राणिधाना, तिनको सुनि भेद बखाना ॥८८ जो पाप काज चितवना, सो मनको दूषण गिनना । पुनि पाप वचनको कहिवौ, सो वचन व्यतिक्रम लहिवी ॥८९ सामायिक समये भाई, जो कर चरणादि चलाई । सो तनको दोष बतायो, सतगुरु ने ज्ञान दिखायो ॥९० चौथो जु अनादर नामा, है अतीचार अघ धामा । आदर नहिं सामायिकको, निश्चय नहि जिन - नायकको ॥ ९१ समरण अनुपस्थाना है, इह पंचम दोष गिना है । ताको सुनि अर्थं विचारा, सुमरणमें भूलि प्रचारा ॥९२ नहि पूरो पाठ पढे जो, परिपूरण नाहिं जपै जो । कछुको कछु बोलै बाल, सो सामायिक नहि काल ॥ ९३ ए पंच अतीचारा हैं, सामायिक में टारा हैं । समता सब जीवन सेती, संयम शुभ भावनि लेती ॥९४ आरति अरु रोद्र जु त्यागा, सो सामायिक बड़भागा । सामायिक धारों भाई, जाकरि भव-पार लहाई ।। ९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३१५ www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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