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________________ दौलतरामात क्रियाकोष जीवदयामय जिनवर-पन्या, धारै श्रावक बर-निरग्रन्था। काम क्रोष मद छल लोभादी, टारे जैनी जन रागादी ॥४४ आगम अध्यातम जिन बानी, जाहि निरूपें केवलज्ञानी। ताकी श्रद्धा दृढ़ धरि धीरा, करणगोचरी कर वर वीरा ॥४५ जाकरि छूटे सर्व अनर्धा, लहिये केवल आतम अर्था । धर्म धारणा धारि अखण्डा, तजी सर्व ही अनरथदण्डा ॥४६ इन पंचनिके भेद अनेका, त्यागी सूबधी धारि विवेका। बड़ो अनर्थदण्ड है जूवो, या सर्व पाप महिं डूबौ ॥४७ या सम और न अनरथ कोई, सकल वरतको नाशक होई । द्यूत कर्म के विसन न लागे, तब सब पाप पन्थतें भागे ॥४८ द्यूत कर्ममें माहिं बड़ाई, जाकरि बूड़े भवमें भाई। अनरथ तजिवो अष्टम व्रत्ता, तीजो गुणवत्त पाप निवृत्ता ॥४९ ताके अतीचार तजि पंचा, तिन तजियां अघ रहे न रंचा। पहलो अतीचार कन्दर्पा, ताको भेद सुनों तजि दर्पा ॥५० कामोद्दीपक कुकथा जोई, ताहि तजे बुधजन है सोई । कौतकुच्य है दोष द्वितीया, ताको त्याग व्रतिनिनें कीया ॥५१ बदन मोरिवी बांको करिवौ, भौंह नचैवो मच्छर धरिवी । नयनादिकको जो हि चलावी, विषयादिकमें मन भटकावी ॥५२ इत्यादिक जे भंडिम बातें, तजी व्रती जे सुव्रत धातें। कौतकुच्यको अर्थ बखानो, पुनि सुनि तीजा दोष प्रवानों ॥५३ भोगानर्थक है अति पापा. जारि पइये दर्गति तापा। ताकों सदा सर्वदा त्यागौ. श्री जिनवरके मारग लागौ ॥५४ बहुत मोल दे भोगुपभोगा, सेवै सो पावे दुख रोगा। भोगुपभोग-थकी यह प्रीतो, सो जानों अधिकी विपरीती ॥५५ बहुरि भूखतें अधिकों भोजन, जल पीवी जो विनहि प्रयोजन । शक्ति नहीं अह नारी सेवौ, करि उपाय मैथुन उपजेवो ॥५६ वृथा फूल फल पानादिक जे, बाधा करै लहें शठ अघ जे । इत्यादिक जे भोगै अर्था, जो सेवौं सो लहै अनर्था ॥५७ है मौखर्य चतुर्था दोषा, ताहि तजे श्रावक व्रत-पोषा । जो बाचालपनाको भावा, सो मौखर्य कहें मुनिरावा ।।५८ बिना बिचार्यो अधिको बकिबी, झूठे वाग्-जालमें छकिवी। असमीक्षित अधिकरण जु बीरा, अतीचार पंचम तजि धीरा ॥५९ विन देख्यो विन पूछ्यो कोई, घड़ी मुसल उखली जोई। कछु भी उपकरणा बिन देख्या, बिन पूड्यां गृहिवौ न असेखा ॥६० तब हिंसा टरिहै परवीना, हिंसा-तुल्य अनर्थ न लीना। ए सब अष्टम व्रत के दोषा, करै जु पापी व्रतकों सोखा ॥६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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