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श्रावकाचार-संग्रह पापवस्तु मांगी नहिं देवे, जो देवे सो शुभ नहिं लेवै । जामें जीवनिको उपकारी, सो देवो सबको हितकारी ॥२६ अन्न वस्त्र जलाऔषध आदी, देवौ श्रुतमें कह्यौ अनादी । दान समान न आन जु कोई, दयादान सबके सिर होई ॥२७ मंजारादिक दुष्ट सुभावा, मांस अहारी मलिन कुभावा । तिनको धारन कबहु न करनों, जीवनिकी हिंसातें डरनों ।।२८ नखिया पखिया हिंसक जेही, धर्मवन्त पाल नहिं तेही । आयुधको व्यापार न कोई, जाकर जीवनिको बध होई ॥२९ सीसा लौह लाख साबुन ए, बनिज जाग नहिं अधकारन ए। जेती वस्तू सदोष बताई, तिनको बनिज त्यागवौ भाई ॥३० धान पान मिष्टादि रसादिक, लवण हींग घृत तेल इत्यादिक । दल फल तृण पहपादिक कंदा, मधु मादिक बिणिजे मतिमन्दा ॥३१ अतर फुलेल सुगन्ध समस्ता, इनको बिणज न होइ प्रशस्ता । तथा अजोग्य मोम हरतारें, हिंसाकारन उद्यम टारै ।।३२ बध बन्धनके कारिज जेते, त्यागह पाप बिणज तुम तेते । पशु पंखी नर नारी भाई, इनके विणज महा दुखदाई ।।३३ काष्ठादिकको विणज न करै, धर्म अहिंसा उरमें धरै । ए सब कुबिणज छांडै जोई, धरम सरावक धारै सोई ।।३४ मूलगुणनिमें निंदै एई, अष्टम व्रतमें निंदे तेई । बार-बार यह बिणज जु निद्या, इनकू त्यागें ते नर वंद्या ॥३५ सुवरण रूपा रतन प्रसस्ता, रूई कपरा आदि सुवस्ता। बिणज करै तो ए करि मित्रा, सबै तजौ अति ही अपवित्रा ॥३६ सुनो पांचवों और अनर्था, जे शठ सुनहि मिथ्यामत अर्था । इह कुसूत्र सुणवौ अघ मोटा, और पाप सब यातें छोटा ॥३७ पाप सकल उपजें या सेता, उपजै कुबुधि जगतमें तेती। भंडिम बात सुनों मति भाई, वशीकरण आदिक दुखदाई ।।३८ बशीकरण मनको करि संता, मन जीत्यौ है ज्ञान अनन्ता । कामकथा सुनिवौ नहिं कबहू, भूलै घनें चेत परि अबहू ॥३९ परनिंदा सुनियां अति पापा, निंदक लहै नरक सन्तापा। कबहुं न करिवौ गग अलापा, दोष त्यागिवौ होय निपापा ॥४० विकथा करिवो जोगि न बीरा, धर्मकथा सुनिवौ शुभ धीरा । आलवाल बकिवौ नहिं जोग्या, गालि काढिवौ महा अजोग्या ।।४१ बिना जैनवानी सुखदानी, और चित्त धग्विौ नहिं प्रानी । केवलिश्रुत केवलिकी आणा, ताको लागै परम सुजाणा ॥४२ ते पावे निर्वाण मुनीशा, अजरा होवें जोगीशा।। सीख श्रवण रचना कुकथाको, नहीं कगै जु कदापि वृथाकौ ॥४३
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