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दौलतराम-कृत क्रियाकोष पहलो गुणवत, गुणमई, छट्ठा व्रत सो जानि । दसों दिशा परमाण करि, श्रीजिन आज्ञा मानि ॥७७ तीन गुणव्रत में प्रथम, दिग्व्रत कह्यो जिनेश । ताहि धरे श्रावक व्रती, त्यागें दोष असेस ।।७८ लोभादिक नाशन निमित, परिग्रहको परिमाण । कीयौ तैसें ही करी, दिशि परमाण सुजाण ।।७९
बेसरी छन्द पूरव आदि दिशा चउ जानों, ईशानादि विदिशि चउ मानों। अध ऊरध मिलि दस दिशि होई, करै प्रमाण व्रती है सोई ॥८० शीलवान व्रत धारक भाई, जाके दरशनतें अघ जाई। या दिशिकों एतोही जाऊँ, आगे कबहुं न पाँव धराऊँ ॥८१ या विधिसों जु दिशाको नेमा, करै सुबुद्धि धरि व्रतसों प्रेमा। मरजादा न उलंघे जोई, दिग्वत धारक कहिये सोई ।।८२ दसों दिशा की संख्या धारे, जिती दूरलौ गमन विचारै। आगै गये लाभ है भारी, तो पनि जाय न दिग्व्रत धारी ।।८३ संतोषी समभावी होई, धनकू गिनै धरि-सम सोई। गमनागमन तज्यो बहु जाने, दया धर्म धार्यों उर तानै ॥८४ लगै न हिंसा तिनको अधिकी, त्यागी जिन तृष्णा धन निधिकी। कारण हेत चालनो परई, तो प्रमाण माफिक पग धरई ॥८५ मेरु डिगै परि पैंड न एका, जाय सुबुद्धी परम विवेका। व्रत करि नाश करै अघ कर्मा, प्रगटै परम सरावक धर्मा ।।८६ बिना प्रतिज्ञा फल नहिं कोई, रहै बात परगट अवलौई। अतोचार पाँचों तजि बीरा, छट्ठो व्रत धारौ चित धीरा ।।८७ पहली करघ व्यतिक्रम होई, ताको त्याग करो श्रुति जोई। गिरि परि अथवा मन्दिर परि, चढनो परई करध भूपरि ॥८८ ऊरध की संख्या है जेती, ऊंची भूमि चढे बुध तेती। आगें चढिवो कौं जो भावा, अतीचार पहलो सु कहावा ।।८९ दूजो अध-व्यतिक्रम तजि मित्रा, जा तजिये व्रत होइ पवित्रा। वापी कूप खानि अर खाई, नीची भूमि माहिं उतराई ॥९० तौ परमाण उलंघि न उतरी, अधिकी भू उतरीं व्रत खतरौ। अधिक उतरने को जो भावा, अतीचार दूजो सु कहावा ॥९१ तीजो तिर्यग व्यतिक्रम त्यागौ, तब छट्टे व्रत माहीं लागो। अष्ट दिशा जे दिशि विदिशिा हैं, तिरछे गमने माहिं गिना हैं ॥९२ बहुरि सुरंगादिक में जावी, सोऊ तिरछे गमन गिनावी। चउदिशि चउविदिशा परमाणा, ताको नाहिं उलंघ बखाणा ॥९३
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