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पदम-कृत श्रीवकांचार
एकान्त विपरीत संशयपणो ए, विनयमत अज्ञान तो । द्रव्य भाव सहूउ लखी ए, टालो विष समान तो ॥१७ असत्य वस्तु अहितकारी ए, स्थापना भाव एकान्त तो । द्रव्य रूप बौद्ध मत ए, करूं बोधकीति असंत तो ॥१८ श्री पार्श्वनाथ तीर्थं समे ए, पलास नयर-नदी तीर तो । पिहिताश्रव सूरी शिष्य ए, बुद्धि कीर्ति मुनि भीरु तो ॥ १९ कर्म व भामरि गयो ए, वेश्यातणें बली गेह तो । अजाणपणें चोरी करी ए, अखादि भक्ष कीयो तेह तो ॥ २० निज गुरु ते सांभल्यु ए, पछें कीयो तस निषेध तो । छेदोपस्थापना ल्यो वच्छ ए, न वि माने ते अवेदतो ॥ २१ चारित्र भ्रष्ट होइ बापड़ो ए. आदरयो वरथा तिणें रक्त तो । पात्र - पतित पवित्र कह्यो ए, खादि - अखादि असक्त तो ॥२२ तिलमात्र -मांस जु भक्षि ए, जीव-हिंसा- पापवंत तो ।
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मद्य-बिन्दु जो जीव विस्तरी ए, सो माइ नहिं त्रिलोक्य मझार तो । कृत्य-अकृत्य ते न वि लहे ए, विह्वल करे जीव संघार तो ॥२४ मद्य मांस दोष ण भक्ष ए, न वि माने ते पाप तो ।
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क्षणिक शून्य जीव कही ए, मोह मिथ्यात्वे व्यापतो ॥ २५ कर्मतर्णी कर्ता जुदू ए, तस फल भोग वे अन्य तो । क्षिण जादू आवे क्षिण जिम परिणामें मन्य तो ॥ २६ बुद्ध देव नाम कहु ए, तस प्रतिमा सविकार तो । ऊर्ध्वं कर जपमालिका ए, यज्ञोपवोत कंठ धारतो ॥ २७ ए आदेइ विकृत धणी ए, थापी मत एकान्त तो । घोर नरकें ते बापड़ा ए, दुर्धर दुःख सहंत तो ॥२८ सुगत मत जे आदरी ए, मिथ्या कदाग्रही जेह तो । काल अनन्त ते जीवडा ए, भवि भवि दुक्ख सहंत तो ॥२९ इम जाणि आसन्न भव्य ए, परिहरो मत एकांत तो । जिन वाणी हृदय घरो ए, स्याद्वाद जिनमत सत्य तो ॥३० विपरीत मिथ्यात तम्हें सुणो, जेह करे जीव अहित तो ।
ं ह ं जेजूजू तु ए, ते जाणों विपरीत तो ॥३१ वस्त्रापूत जल पीजिए, वली कहु वहि तिन ही दोष तो । कन्दमूल दूषण कहियिए, वली खाइ ते मोख तो ॥३२ रयणी नीर दोष कह्यो ए, वलो रयणी भोजन तो । रुधिर मांस समुं जल अन ए, ए मार्कंड-वचन तो ॥३३ एह वो दोष जे उचरि ए, वली करे निस आहार तो । माहरी माँ ने वांझणी ए, ए विपरीत अपार तो ॥३४
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