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अथ त्रेपन किया वर्णन
दोहा दया शील तप भावना, सुध समकित भवतार । सुर नर वर पदवी देइ, आये शिव-धर-बार ॥१ देव-कुदेव गुरु-कुगुरु, वली साहास्त्र विचार | धर्म-अधर्म गुणउ लखी, तत्त्व-कुतत्त्व मेदसार ॥२ चैत्य' एकादश कजली, उत्तम अष्ट मूल गुण मूल । नेम निशा भोजन तणों, जल-पालन निपुण ॥३ चतुर्विध दान समतापणों, द्वादश व्रत विशाल । तप द्वादश रत्नत्रय, त्रेपन क्रिया गुण माल ॥४ एणिपरि श्रावक क्रिया कही, संक्षेपे सविचार । जे नर नारी पालसी, ते तरसी संसार ॥५
अब भास रासनी . गौतम स्वामी ऊचरे ए, सुनो श्रेणिक सावधान तू। मन वच काय निश्चल करीए. परिहारि मोह अज्ञान तू ॥६ श्रावक धर्म तरु तणो ए, मूल ए समकित सार तो। दृढ पाइ थलहर थिर ए, प्रासाद पीठ उद्धार तो ॥७ समकित विण सोभा नहीं ए, जल विण जिम तलाब तो। दंत विना दंती जेम ए, केसरि दंष्टरा त्याग तो॥८ चन्द्र विना रजनी जेम ए, हंस विना जेम काय तो। गंध सुगंध विना पुष्प जेम ए, राज विना जेम राय तो ॥९ धर्म विना जीव तेम ए, वृथा तस अवतार तो। मनुष्य वेर्षे पशू रूप ए, जेहवो नर आकार तो ॥१० अनादि काल ए बातमा ए, संसार-सागर मझार तो। नाना विध दुख सहू ए, भमतां दुर्गति च्यार तो ॥११ मिथ्यात पाप तणो फल ए, बस थावर जोनि माहे तो। नित्य-इतर निगोदे रही ए, कष्ट बहुविध चाहि तो ॥१२ मूल मिथ्यात एक भेद ए, उत्तर पंच असार तो। उत्तरोत्तर अनेक मेद ए. असंख्य लोक प्रकार तो ॥१३ दर्शन मोह तणे उदये, जीवने होइ मिथ्यात तो। तत्त्व श्रद्धा ते न वि करे ए, रुचि नहीं तस बात तो ॥१४ जिम मतवालो जीवड़ो ए, ते न लहे हेयाहेय तो। दुर्धर ज्वर जिम ऊपने ए, न वि रुचि औषध पीय तो ॥१५ भाव मिथ्यात अनादि काल ए, द्रव्यरूप तणी आदि तो। पाखंडी मेद घणा ए, विरुद्ध करें वावाद तो ॥१६
१. प्रतिमा ।
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