________________
२७८
श्रावकाचार-संग्रह . . नारद से न भ्रमंत नर, भ्रमें अढाई दीप । कामदेव से सुन्दर न, नहिं जिनसे जगदीप ॥४९ जिन-जननी जिन-जनक से, और न गुरुजन जानि । मिष्ट न जिनवानी समा, यह निश्चय परमान ॥५० जिनमूरति सी मूरति न, परमानंद सरूप। जिनसूरति सी सूरति न, जासम और न रूप ॥५१ जिनमंदिर से मंदिर नहीं, जिन तन सो न सुगन्ध । जिन विभूति सी भूति नहिं, जिन श्रुति सो न प्रबंध ॥५२ जिनवर से न महाबली, जिनवर से न उदार । जिनवर से न मनोहरा, जिनसे और न सार ॥५३ चरचा जिन चरचा समा, और न जग में कोइ । अर्चा जिन अर्चा समा, नहीं दूसरी होइ ॥५४ राज न श्री जिनराज से, जिनके राग न रोस । ईति भीति नहिं राज में, नहीं एक भी दोस ॥५५ सेर्वे इन्द नरिन्द सब, भजहिं फणीस मुनीस । रटें सूर ससि सुर सबै, जिनसम और न ईस ।।५६ अर्चे अहमिंद्रा महा, अरचे चतुर सुजान । हरि हर प्रति हरि हलि मदन, पूजें चक्रि पुमान ॥५७ गुरु कुल कर नारद सबै, सेवें तन मन लाय । जग में श्री जिन राय सों, पूज्य न कोइ लखाव ॥५८ तीर्थकर पर सारिखा, और न पद जग माहिं । बज्र वृषभ नाराच सो, संहनन कोई नाहिं ॥५९ सम चतुस्र संठान सो, और नहीं संठाण । पुरुष सलाका सारिखा, और न कोई जाण ॥६० चक्रायुध हल-आयुधा, कुसुमायुध इत्यादि । धर्मायुध के दास सब, वज्रायुव नृप आदि ॥६१ जे हैं चरम शरीर धर, तद भव मुक्ति मुनीश । तिन सौ कोई न मानवा, नमें सुरासुर सीस ॥६२ नहीं सिद्ध पर्याय सी, और शुद्ध पर्याय । नहीं केवली कायसी, और दूसरी काय ॥६३ अर्हत सिध साधू सबै, केवल भाषित धर्म । इन चउ से नहिं मंगला, उत्तम और न पर्म ॥६४ इन चउ शरणनि सारिखे, शरण नाहिं जग माहि। . संघ न चरविधि संघ से, जिनके संशय नाहिं ॥६५ चोर न इन्द्री-चित से, मुसें धर्म धन भूरि । चारित से नहिं तलवरा, डारै तिनकों चूरि ॥६६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org