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________________ २७५ दौलतराम-कृत कियाकोष दया सत्य को कर प्रणति, भाषों तोजो प्रत्त। जो इन द्वय विन ना हुबे, चोरी त्याग प्रवृत्त ।।६२ चोरी छांड़ी बड़ भाई, चोरी है अति दुखदाई।। चोरी अपजस उपजावे, चोरी तें जस नहिं पावै ॥६३ चोरी तें गुणगण नाशा, चोरी दुर्बुद्धि प्रकाशा। चोरी तें धर्म नशावै, इह आज्ञा श्रीगुरु गावे ॥६४ चोरी सों माता ताता, त्यागें लखि अपनो धाता। चोरी सों भाई-बंधा, कबहुं न राखे संबंधा ॥६५ चोरी ते नारि न नीरे, चोरी तें पुत्र न तीरे । चोरी सों मित्र बिडारे, चोरी सों स्वामी न धारै ॥६६ चोरी सों न्याति न पांती, चोरी सों कबहँ न सांती। चोरी तें राजा दंडे, चोरी तें सीस बिहंडे ॥६७ चोरी तें कुमरण होई, चोरी में सिद्धि न कोई। चोरी तें नरक निवासा, चोरो तें कष्ट प्रकाशा ॥६८ चोरी तें लहै निगोदी, चोरी तें जोनि जु बोदी। चोरी में सुमति न यावे, चोरी तें सुमति न पावै ॥६९ चोरी तें नासे करुणा, चोरी में सत्य न धरणा। चोरी तें शील पलाई, चीरी में लोभ धराई ॥७० चोरी ते पाप न छूट, चोरी तें तलवर कूटे। चोरी तें इज्जति भंगा, त्यागो चोरनि को संगा ॥७१ चोरी करि दोष उपावै, चोरी करि मोक्ष न पावै। चोरी के मेद अनेका, त्यागौ सब धारि विवेका ॥७२ परको धन भूले-विसरे, राखौ मति ल्यों गुण पसरै। परको धन गिरियो परियो, दाबो मति कबहु न धरियो ।।७३ तोला घटि बघि जिन राखै, बोलो मति कूडी साखे । कबहुं ओंटा जिन देहो, डाका दे धन मति लेहो ॥७४ मति दगड़ा लूटो भाई, दौड़ाई है दुखदाई।। ठग विद्या त्यागौ मित्रा, परधन है अति अपवित्रा ॥७५ काहूकं द्यो मति तापा, छांडो तन मन के पापा। पासीगर सम नहिं पापी, पर प्राण हरै संतापी ॥७६ सो महानरक में जावे, भव-भव में अति दुख पावे । हाकिम है धन मति चोरो, ले चूंस न्याव मति बारौ ॥७७ लेखा में चूक न कार, इहि नरभव मूढ़ ! न हारे । जे हरियो पर को वित्ता, ते पापी दुष्ट जु चित्ता १७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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