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दौलतराम-कृत क्रियाकोष नाग आदि जे जीव विरूप, लापर सबतें निंद्य प्ररूप । सबतें बुरो महा असपर्श, लापरका लखिये नहिं दर्श ॥२७ चुगली-सांचहु झूठ हि जानि चुगल महा चंडाल समान । चुगली उगली मुखतें जबै, इह भव पर भव खोये तबै ॥२७ सत्य-हेत धारौ भवि मौन, सत्य बिना सब संजम गौन । थोरो बोलह कारण सत्य, मन वच तन करि तजी असत्य ॥२९ मुनि के सत्य महाव्रत होय, गृहि के सत्य अणुव्रत होय । मुनि तो मौन गहें के जैन, वचन निरूपें अमृत बैन ॥३० लौकिक वचन कहें नहिं साध, सब जीवन के मित्र अगाध । मषावाद नहीं बोले रती, सो जिनमारग सांचे जती ॥३१ श्रावक कों किंचित आरम्भ, त्यागै कुविणज पापारम्भ । लौकिक वचन कहन जो परै, तौ पनि पाप वचन परिहरै ॥३२ पर उपगार दया के हेत, कबहुक किंचित झूठहु लेत। जेती आटे माहें लोन, ते तो बोलै अथवा मौन ॥३३ झूठ थकी उचरै पर-प्रान, तो वह झूठ सत्य परमान। अपने मतलब कारिज झूठ, कबहुं न बोले अमृत बूठ ॥३४ प्राण तजै पर सत्य न तजै, यद्वा तद्वा वचन न भजे । यहै देह अर भोगुपभोग, सब ही झूठ गिनें जग रोग ॥३५ परिग्रह की तृष्णा नहिं करै, करि प्रमाण लालच परिहरै। पाप झूठ को है यह लोभ, याहि तजे पावै व्रत शोभ ॥३६ सत्य प्रताप सुजस अति बधै, सत्य धरै जिन आज्ञा सधै। राजद्वार पंचायति माहि, सत्यवन्त पूजित सक नाहिं ॥३७ इन्द्र चन्द्र रवि सुर धरणेद, सत्य बचे अहमिन्द मुणिन्द। करें प्रशंसा उत्तम जानि, इहे सत्य शिव-दायक मानि ॥३८ दया सत्य में रंच न भेद, ए दोऊ इकरूप अभेद। विपति हरन सुख करन अपार, याहि धरें तें 8 भव-पार ॥३९ याहि प्रसंसें श्री जिनराय, सत्य समान न और कहाय । भुक्ति मुक्ति दाता यह धर्म, सत्य बिना सब गनिये भर्म ॥४० अतीचार पांचों तजि सखा जो तें जिन वच अमृत चखा। तजि मिथ्योपदेश मतिवान, भजि तन मन करि श्री भगवान ।।४१ देहि मूढ़ मिथ्या उपदेश, तिनमें नाहिं सुमति को लेश । बहुरि तजी जु रहोऽभ्याख्यान, ताको व्यक्त सुनों व्याख्यान ।।४२ गुप्त बारता परकी कोइ, मति परकासौ मरमी होइ । कूट कुलेख क्रिया तजि वीर, कपट कालिमा त्यागहु धीर ॥४३ करि न्यासापहार परिहार, ताको भेद सुनहु व्रत धार । पेलो आय धरोहरि धरै, अर कबहूं विसरन वह करे ॥४४
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