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श्रावकाचार-संग्रह
afar अव्याकुलता लिए, बोलहु करुणा धरिकै हिये । . कबहु ग्रामणी वचन न लपौ सदा सर्वदा श्री जिन जपो ॥९ अपनी महिमा कबहुँ न करो, महिमा जिनवर की उर धरौ । जो शठ अपनी कीरति करें, ते मिथ्यात सरूप जु धरै ॥ १० निन्दा परकी त्यागहु भया, जो चाहो जिनमा रंग लया । अपनी निन्दा गरहा करो, श्री गुरु पै तप व्रत आदरौ ॥११ पापनि को प्रायश्चित लेह, माया मच्छर मान तजेह । होवे जहां धर्म को लोप, शुभ किरिया होवे पुनि गोप ॥१२ अर्थशास्त्र के विपरीत, मिथ्यामत की ह्न परतीत । तहां छांड़ि शंका प्रतिबुद्ध, भावै सत्य वचन अविरुद्ध ।। १३ इनमें शंका कबहुं न रहू यही बुद्धि निश्चय उर धरहु । सत्य मूल यह आगम जैन, जैनो बोले अमृत बैन ॥ १४ चार्वाक बौद्ध विपरीत, तिनके नाहि सत्य परतीति । कौलिक कापालिक जे जानि, इनमें सत्य लेश मति मानि ॥ १५ सत्य समान न धर्म जु कोय, बड़ो धर्म इह सत्य जु होय । सत्य थकी पावै भव पार, सत्यरूप जिनमारग सार ॥१६ सत्य प्रभाव शत्रु मित्र, सत्य समान न और पवित्र । सत्य प्रसाद अनि शीत, सत्य प्रसाद होय जग-जीत ॥ १७ सत्य प्रभाव भृत्य ह्वै राव, जल ह्वै थल धरिया सत भाव । सुर किंकर वन पुर होय, गिरि घर सतकरि जोय ॥१८ सर्प माल हरि मृगरूप, बिल सम हाॅ पाताल विरूप । को करै शस्त्र की घात, शस्त्र होय सो अंबुज-पात ||१९ हाथी दुष्ट होय समश्याल, विष अमृतरूप रसाल । for सुगम सत्य-प्रभाव, दानव दीन होय निरदाव || २० सत्य-प्रभाव लहैं निज ज्ञान, सत्य धरे पावै वर ध्यान । सत्य-प्रभाव होय निरवाण, सत्य बिना ना पुरुष बखान ॥२१ सत्य- प्रसाद वणिक धनदेव, राजा करि पाई बहु सेव । इह भव पर भव सुखमय भयौ, जाको पाप करम सब गयौ ॥ २२ झूठ थकी वसु राजा आदि, पर्वत, विप्र सत्यघोषादि ।
जग देवादिक वाणिज घनें, गये दुरगती जाय न गिनें ॥ २३ सत्य दया को रूप न दोय, दया बिना नहि सत्य जु होय । सत्य तनें द्वय भेद अछेद, व्यवहारो निश्चय निरखेद ||२४ निश्चय सत्य निजातम बोध, व्यवहारो जिन वचन प्रबोध । सत्य बिना सब व्रत तप बादि, सत्य सकल, सूत्रनिमें आदि ||२५ सत्य प्रतिज्ञा बिन यह जीव, दुरगति लहें कहें जग-पीव । सूकर कूकर वृक चंडार, घूघू श्याल काग मंजार ॥२६
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