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________________ दौलतराम-कृत क्रियाकोष २६९ हिसा है परमादतें अर प्रमादतें झूठ। तातें तो प्रमादकू, देय पापसों पुठ ।।९२ चौपाई श्री पुरुषारथ सिद्धि उपाय, ग्रन्थ सुन्यां सब पाप लुभाय । जहँ द्वादश व्रत कहे अनूप, सम दम यम नियमादि स्वरूप ।।९३ सम जु कहावै समताभाव, सम्यकरूप भवोदधि नाव । दम कहिये मन इन्द्रिय-रोध, जाकर लहिये केवल बोध ॥९४ जीवो जाव वरत यम कह्यौ, अवधिरूप सो नियम जु लह्यो। ऐसे भेद जिनागम कहै, निकट भव्य है सो ही गहै ।।९५ तामैं सत्य कह्यो चउ भेद, सो मुनि करि तुम धरहु अछेद । चउविधि झूठ तनों परिहार, सो है सत्य महागुण सार ॥९६ प्रथम असत्य तजौ बुध वहै, वस्तु छत्तीकू अछती कहै । दूजे अलती को जो छती, भाषे अविवेकी हतमती ।।९७ तीजे कहै औरसों और, विरथा मूढ़ करै झकझोर । चौथे झूठ तने वय-भेद, गहित सवद प्रति उछेद ॥९८ ए सब कृत कारित अनुमंत, मन वच तन करि तज गुनवंत । चगली-चारी परकी हासि, कर्कश वचन महा दुख-राशि ॥९९ विपरीत न भाषौ बुघिवान, सबद तजौ अन्याय सुजान । वचन प्रलाप विलाप न बोलि, भजि जिन नायक तजि सहु भोलि ॥१०० भाषौ मत उतसूत्र कदेह, मिथ्यामत सों तजो सनेह । ए सल गहित न तजेह, जिनशासन की सरधा लेह ॥१ बहुरि सबै सावध अजोग, वचन न बोलौ सुबुधी लोग। छ दन भेदन मारण आदि, त्यागौ अशुभ बचन इत्यादि ॥२ चोरी जोरी डाका दौर, ए उपदेश पाप सिरमौर । हिंसा मृषा कुशील विकार, पाप वचन त्यागौ वत धार ॥३ खेती विणज विवाह जु आदि, वचन न बोले व्रती अनादि । तजहु दोषजुत वानी भया, बोलह जामें उपजै दया ॥४ ए सावध बचन तजि धीर, तजि अप्रीति वचन वर वीर। अरति-करन भय-करन न बोल, शोक-करन त्यागो तजि भोल ॥५ कलह-करन अध-करन तजेहु, बैर-करन वाणी न भजेहु । ताप-करन अर पाप-प्रधान, त्यागहु बचन जु दोष-निधान ॥६ मर्म-छद को वचन न कहो, जो अपने जियको शुभ चहो । इत्यारिक जे अप्रिय बैन, त्यागहु, सुनि करि मारग जैन ॥७ बोलो हित मित वानी सदा, संशय वानी बोलि न कदा। सत्य प्रशस्त दया रस भरी, पर उपगार करन शुभ करी ॥८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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