________________
श्रावकाचार-संग्रह राजभवन राजा बसे चंग, श्रेणिक नाम भूप उत्तिंग । क्षायिक समकित सोहे सार, देव शास्त्र गुरु भक्ति उदार ॥११ चेलणा राणी आदि बहु नार, अभय वारिषेण आदि कुमार । राजा सुख भोगवे संसार, साधर्मी जन करे उपकार ॥१२ एक दिवस श्रेणिक महिपाल, सभा पूरि बैठो गुणमाल । प्रधान पुरोहित श्रेष्ठी भूपती, बहुविध बात करे निजमती ॥१३ तिण अवसर आव्यो वनपाल, करंड भरि फल फूल अपार । भेंट मुकीने करेय जुहार, स्वामी मुझ बोनती अवधार ॥१४ 'विपुलाचल मस्तक सुविशाल, समोसरयां श्रीवीर गुणमाल । बार सभाने दे उपदेश, त्रिभुवनपति सेवें जिनेश ॥१५ तब आनंद्यो श्रेणिक राय, तिणी दिशं सात पग जाय । परोक्ष नमोऽस्तु कियो जोड़ी हाथ, विनय सहित भूप रुक साथ ॥१६ पछे मालीने कीयो पसाय, वस्त्र आभूषण आख्या राय । आनंद मेरी तब उछली, वन्दन चाल्यो भप मन रली ।।१७ राज प्रजा लोके संचरयो, अन्तःपर भविजन पर वस्यो। हय गय रथ पालखी पदांति, गीत नृत्य बाजित जय क्षांति ॥१८ समोसरण मांही जब गया, तब आनन्द भवियण मन भया । मुखतें करतां जय जयकार, भेंटया जिननर त्रिभुवन तार ॥१९ तीन प्रदक्षिणा जावे दोध, अष्ठ प्रकारी पूजा कीध । जल गन्ध अक्षत पुष्प नैवेद्य, दीप धूप-फल अर्घ वसु भेद ॥२० जिन पूजी स्तवन उच्चरी, भाव-सहित भक्ती घणुं करी। अनन्त गुणसागर जिनदेव, सुर नर फणिपति करें जिन सेव ॥२१ सफल चरण जाणों तेह तणा, जे जिन यात्र धरि आपणां । प्रशस्त हस्त कमल ते कही, जिन पूजे ते पात्र-दान तें सही ॥२२ धन्य मुख जिह्वा तेह तणी, स्तवन करो जे जिन गुण भणी। नयन सफल कोधो वली नेह, दीठ स्वामी जु जिन जेह ॥२३ जिनवाणी सुनी निज करण, सफल मस्तक तें नमें जिन-चरण । तप जप ध्यान अध्ययन अभ्यास, उत्तम शरीर जे साधे शिववास ॥२४ पूजी स्तवी वांछे भूप इष्ट, जन्म जरा मृत्यू हरो अनिष्ट । दुक्ख करमनो क्षय जिन करो, जनमि जनमि पाइ अनुसरो ॥२५ साष्टांग प्रणमी जिन पाय, पाछे वंद्या गौतम गुरु पाय । यथायोग्य भगति सहुं करी, साधरमी जन विनय अनुसरी ॥२६ नर सभाइ कोयों परवेश, निज निज स्थाने बैठ्या नरेश । धर्म वांछा करें भविजन्न, जिम चातक मेह जीवन्न ॥२७ दिव्य वाणि प्रगट तब भई, निज निज भासा पृच्छ जु जुई। अध मागधि श्री जिनवर भाष, सर्व संदेह करे विनाश ॥२८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org