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श्री पदम कत श्रावकाचार
मंगलाचरण
वस्तु छन्द सकल जिनेश्वर चरण-कमल ते नमुं
गुण छैतालीस सद्धारक वारक मोह-तिमिर-हर । पंचकल्याण-नायक, · दायक
शिवसुखकार मनोहर । शारदा स्वामीनें मन धरू
आण धरूं गुरु निर्ग्रन्थ पाय । श्रावकाचार-विधि . वरण,
जो तुम्हों करो अवसाय ॥१
चौपाई महीतल द्वीप असंख्य मझार, जम्बू द्वीप जम्बु तरु धार । द्वीप लक्ष योजन विस्तार, चौत्रीस क्षेत्र सोहै सविचार ॥२ ते मध्य मेरु सुदर्शन नाम, लक्ष योजन ऊँचो गुण दाम । कनक-तणा सोल जिनगेह, त्रिण काल वंदुं हुं नेह ॥३ मेरु तणी दक्षिण दिस जान, भरतक्षेत्र नामें मन आन । षट् खंडे करि सोहै तेह, पंच मलेच्छ एक आरज एह ॥४ आरज खंड मांहे शुभ ठाम, जनपद जानु मगध सुनाम । गिरि-गुहा वन वाडी कूप, वावि खंडोर बलि नदी स्वरूप ॥५ द्रोण कर्वट मटंब खेट ग्राम, पुर पाटण वाहन भेद नाम । मणि माणिक मोती परबाल, धन धान्ये भरिआ हु विशाल ॥६ ठामि ठामि दीसे जिन गेह, हेम रत्न प्रतिमा नहि छेह । ऋषि मुनी जती अनगार, संघ सहित ते करें विहार ॥७ सरस मगध देश मांहि मझार, राजगृही नयरी गुणधार । गढ गोपुर खाई जलभृत्त, मटकोसीसा शोभाजुत्त ॥८ नगर मांहे सोहे जिनगेह, हाट मन्दिर नाला नहि छेद । चतुःवर्ण वसे परजा लोक, मनुष्य जन्म पामा करि रोक ॥९ जिन पूजे पोषे यति पात्र, तीर्थ सिद्धक्षेत्र करे जात्र । पुण्यतणां करे षट् कर्म, चार वर्ग साधे ते मर्म ॥११
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