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________________ २० श्रावकाचार -संग्रह सम्यग्दृष्टिकी परिणतिका विस्तृत वर्णन अविरत सम्यक्त्वी वन्दनीय है और मिथ्यादृष्टि तपस्वी भी निन्दनीय है सम्यक्त्वके निःशंकित आदि आठ अंगोंका स्वरूप सम्यक्त्वके दोष और अतीचारोंका त्यागौ ही सम्यग्दृष्टि है अविरत सम्यक्त्वकी परिणतिका वर्णन श्रावककी ग्यारह प्रतिमाओं का उपसंहार दर्शन प्रतिमाका पुनः स्वरूप वर्णन दूसरी, तीसरी और चौथी प्रतिमाका वर्णन पाँचवीं और छठी प्रतिमाका स्वरूप सातवी, आठवीं और नवमी प्रतिमाका स्वरूप दशवीं और ग्यारहवीं प्रतिमाका स्वरूप पुनः दानको महिमा बताकर आहार दान देने और अनुमोदना करनेवालों का उल्लेख धर्म साधनभूत सात क्षेत्रोंका वर्णन और उनमें धन खर्चनेकी प्रेरणा अचेतन प्रतिमा के दर्शन पूजन करनेसे कैसे स्वर्गादिकी प्राप्ति सम्भव है ? इस शंकाका समाधान धन होनेपर ही दान देंगे, इस विचारका त्यागकर प्रतिदिन जितना भी सम्भव हो उतने दान देनेका उपदेश जलगालनकी विधि अगालित जल-पानके दोषोंका वर्णन गालित और उष्ण जलकी मर्यादाका वर्णन रात्रि भोजनके दोषोंका वर्णन रात्रिभोजी ब्राह्मणके अनेक भवोंतक दुर्गतियोंमें परिभ्रमणका वर्णन रात्रिभोजन-परित्यागके फलका वर्णन रत्नत्रय धर्मका अंगोंके साथ विस्तृत वर्णन रत्नत्रय धर्म तो मुक्ति-कारक ही है, किन्तु उससे इन्द्रादिके पदकी प्राप्ति शुभका अपराध है, क्योंकि मुक्तिका उपाय बन्धनरूप नहीं होता त्रेपन क्रियाओंका उपसंहार और अपनी लघुताका प्रदर्शन परिशिष्ट किशनसिंह - कृत क्रियाकोषमें उद्धृत गाथा - श्लोक सूची दौलतराम - कृत क्रियाकोषमें उद्घृत गाथा - श्लोक सूची पदमकवि-कृत श्रावकाचारमें निर्दिष्ट आचार्य नामादि Jain Education International For Private & Personal Use Only ३६६ ३६८ ३६८ ३७० ३७१ ३७१ ३७१ ३७२ ३७३ ३७४ ३७५ ३७७ ३७४ ३७९ ३८० ३८० ३८१ ३८१ ३८२ ३८३ ३८४ ३८६ ३८९ ३८९ ३९० ३९१ ३९२ www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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