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________________ श्रावकाचार-संग्रह वेसरी छन्द ए दुरगति दाता न कदेही, शिव-कारण हूँ कहइ विदेही। सम्यक सहित महाफल दाता, सब व्रत्तनि को सम्यक त्राता ॥६६ समकित सों नहिं और जु धर्मा, सकल क्रिया में सम्यक पर्मा। जाके भेद सुनो मन लाए, जाकरि आतम तत्व लखाए ॥६७ भेद बहुत पर द्वै बड़ मेदा, निश्चय अर व्यवहार अछेदा। निश्चय सरधा निज आतम की, रुचि परतोति जु अध्यातम की ॥६८ सिद्ध समान लखे निज रूपा, अतुल अनन्त अखंड अनूपा । अनुभव रसमें भोग्यो भाई, धोई मिथ्या मारग काई ।।६९ अपनों भाव अपुनमें देखो, परमानन्द परम रस पेखो। तीन मिथ्यात चौकड़ी पहली, तिन करि जीवनि की मति गहली ॥७० मोह-प्रकृति है अट्ठाबीसा, सात प्रबल भाषे जगदीसा। सात गये सबही नसि जावें, सर्व गये केवल पद पावें ॥७१ उपशम क्षय-उपशम अथवा क्षय; सात तनों कोयौ तजि सब भय । ये निश्चय समकित को रूपा, उपजै उपशम प्रथम अनूपा ।।७२ सुनि सम्यक व्यवहार प्रतीता, देव अठारा दोष बितीता। गुरु निरग्रन्थ दिगम्बर साधू, धर्म दयामय तत्व अराधू ॥७३ तिनकी सरधा दिढ़ करि धारै, कुगुरु कुदेव कुधर्म निवारे। सप्त तत्व को निश्चय करिवी, यह व्यवहार सु सम्यक धरिवौ ॥७४ जीव अजीवा आस्रव बंधा, संवर निर्जर मोक्ष प्रबन्धा। पुण्य पाप मिलि नव ए होई, लखै जथारथ सम्यक सोई ।।७५ ये हि पदारथ नाम कहावै, एई तत्व जिनागम गावै । नव पदार्थ में जीव अनन्ता, जीवनि मांहि आप गुणवंता ॥७६ लखै आपको आपहि माहीं, सो सम्यक दृष्टि शक नाहों । ए दोय भेद कहै समकित के, ते धारौ कारण निज हितके ॥७७ सम्यकदृष्टि जे गुण धारे, ते सुनि जे भव-भाव विडारै। अठ मद त्यागे निर्मद होई, मार्दव धर्म धरै गुन सोई ।।७८ राज गर्व अरु कुलको गर्वा, जाति मान बल मान जु सर्वा । रूप तनूं मद तपको माना, संपति अर विद्या अभिमाना ||७९ ए आठों मद कबहु न धारै, जगमाया तृण-तुल्य निहारे। अपनी निधि लखि अतुल अनन्ती, जो परपंचनि में न वसंती ॥८. अविनश्वर सत्ता विकसंती. ज्ञान-दृगोत्तम द्युति उलसंती। तामें मगन रहै अति रंगा, भवमाया जाने क्षण भंगा ।।८१ तीन मूढ़ता दूरी नाखे, देव धर्मगुरु निश्चय राखे । कुगुरु कुदेव कुधर्म न पूजा, जैन बिना मत गहै न दूजा ।।८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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