________________
.२५८
श्रावकाचार-संग्रह कैयक के भाखें भया, नाम, सूत्र अनुसार । राव जुधिष्ठर सारिखे, धर्मात्तम अविकार ॥३० दुर्योधन के हठ थकी, एक बारही द्यूत ।
................................................
.............""""" ||३१
..
हारि गये पांडव प्रगट, राज सम्पदा मान । दुखी भये जो दीन जन, ग्रन्थनि माहिं बखान ||३२ पीछे तजि सब जगत कों, जगदीश्वर उर ध्याय । श्री जिनवर के लोक को, गये जुधिष्ठर राय ॥३३ मांस भखनतें बक नृपति, गये सातवें नर्क। तीस तीन सागर महा, पायौ दुख संपर्क ॥३४ अमल थकी जदुनन्दना, रिषिकों रिस उपजाय । भये भस्मभावा सबे, पाप करम फल पाय ॥३५ कैयक उबरे जिन जपी, भये मुनीसुर जेह । येह कथा जिनसूत्र में, तुम परगट सुन लेह ॥३६ चारुदत्त इक सेठ हो, करि गनिकासो प्रीति । लही आपदा जिह धनी, गई संपदा बीति ||३७ ब्रह्मदत्त पापी महा, राजा हो मृग मार। आखेटक अपराधतें, बूडयो नरक मझार ॥३८ चोरी करि शिवभूति शठ, लहे बहुत दुख दोष । ताकी कथा प्रसिद्ध है, कहिवे को सतघोष ॥३९ परदारा पर चित्तधरी, रावण से बलवन्त। अपजस लहि दुरगति गये, जे प्रतिहरि गुणवन्त ॥४० बिसन बुरे बिसनी बुरे, तजो इनों तें प्रीति । ब्रत क्रियाके शत्रु ये, इनमें एक न नीति ॥४१ अब सुनि भैया बात इक, गुण इकबीसौ जेह । इनहीं मूल गुणानिको, परिवारों गनि लेह ॥४२ लज्जा दया प्रशांतता, जिन मारग परतीति । पर औगुनको ढांकिवो, पर उपगार सुप्रीति ॥४३ सोमदृष्टि गुणग्रहणता, अर गरिष्ठता जानि । सबसों मित्राई सदा, वैरभाव नहिं मानि ॥४४ पक्ष पुनीत पुमान की, दोरघदरसी सोय । मिष्ट बचन बोले सदा, अर बहु शाता होय ॥४५ अति रसज्ञ धर्मज्ञ जो, है कृतज्ञ पुनि तज्ञ । कहै तज्ञ जाकू बुधा, जो होवे तत्त्वज्ञ ॥४६ नहीं दीनता भाव कछु, नहिं अभिमान धरेय । सबसों समताभाव है, गुण को विनय करेय ॥४७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org