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दौलतराम-कृत क्रियाकोष जूवा सम नहिं पाप जु कोई, सब पापनि को यह गुरु होई। जूवारी को संग जु त्यागी, चूत कर्म के रंग न लागौ ॥१३ पासा सारि आदि बहु खेला, सब खेलनि में पाप हि भेला। सकल खेल तजि जिन भजि प्रानी, जाकर होय निजातम ज्ञानी ॥१४ ठौर और मद मांस जु निंद, तातें तजिये प्रभू कों बंदै। तज घेश्या जो रजक-शिला सम, गनिका को घर देखहु मति तुम ॥१५ त्यागि अहेरा दुष्ट जु कर्मा, कै दयाल सेवी जिन धर्मा। करे अहेरातें जु अहेरी, लहै नर्क में आपद ढेरी ॥१६ क्षत्री को इह होय न कर्मा, क्षत्री को है उत्तम धर्मा । क्षत् कहिये पीरा को नामा, पर-पीरा-हर जिनको कामा॥१७ क्षत्री दुर्बल कों किम मारे, क्षत्री तो पर-पीरा टारे। मांस खाय सो क्षत्री केसो, वह तो दुष्ट अहेरी जैसो ॥१८ अर जु अहेरी तजे अहेरा, दयापाल ह जिनमत हेरा। तो वह पावै उत्तम लोका, सबकों जीव-दया सुख थोका ॥१९ त्यागो चोरी जो सुख चाही. ठग विद्या तजि लोभ विलाही । पर धन भूले विसरें बायो, राखी मति यह जिन श्रुत गायौ ।।२० लुटि लेहु मति काहू को धन, पर धन हरवेंकों न धरो मन । चुगली करन, लुटावी काकों, छाड़ों भाई अन्य रमा कों ॥२१ काहू की न, धरोहरि दावी, सूधी राखौ मित्र हिसावी । तौल माहिं घटि-बधि मति कारो, इह जिन आज्ञा हिरदै धारो ॥२२
बोहा तजी चोर की संगती, तासू नहिं व्यवहार । चोरयो माल गृही मती, जो चाहो सुख सार ॥२३ परदारा सेवन तजौ, या सम दोष न और। याकों निदे जिनवरा, जो त्रिभुवन के मौर ॥२४ पापी सेवें पर तिया, परें नरक में जाय। तेतीसा-सागर तहाँ, दुख देखें अधिकाय ॥२५ तातें माता बहन अर, पुत्री सम पर-नारि। गिनों भव्य तुम भाव सों, शील वृत्त उर धारि ॥२६ जे जेठी ते मात सम, समवय बहन समान । आप थकी छोटी उमरि, सो बिन सुता प्रमान ।।२७ निन्दे बिसन जु सात ए, सात नरक दुखदाय।। मन बच तिन ए परिहरी, भजी जिनेसुर पाय ॥२८ इन बिसननि करि बहु दुखी, भये अनन्ते जोव। तिनको को वर्णन करै, ए निर्दे जग-पोव ।।२९
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