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दोलतराम-कृत क्रियाकोष
२५५ छायूं जाय न निसकों नीरा, वीण्यूं जाय न धानहुँ वीरा। छाण बीण विन हिंसा होवै, हिंसातै नारक पद जोवें ॥७१ अवर कथन इक सुनने योगा, सुनकर धारहु सुबुधि लोगा। नारिन को लागै बड़ रोगा, मास मास प्रति होहि अजोगा ॥८२ ताको किरिया सुनि गुणवन्ता, जा विधि भा श्रीभगवन्ता। दिवस पांच बीतें सुचि होई, पांच दिनालों मलिन जु सोई ॥८३ उक्तं च श्लोक-त्रिपक्षे शुद्धयते सूती, रजसा पंच वासरे ।
अन्यशक्ता च या नारी, यावज्जीवं न शुद्धयते ॥१ अर्थ-प्रसूता स्त्री डेड़ महीनेमें शुद्ध होय है, रजस्वला पांच दिवस गये पवित्र होय है अर जो स्त्री परपुरुष सों रत भई सो जन्म पर्यन्त शुद्ध नाहीं, सदा अशुचि ही है।
बेसरी छन्द पांच दिवस लौं सगरे कामा, तजिकर, रहिवो एक ठामा । कछु धंधा कखौ नहिं जाकों भई अजोग अवस्था ताको ।।८४ निज भर्ताहं कों नहिं देखे, नीची दृष्टि धर्म को पेखें । दिवस पांचलों न्हावी उचिता, नितप्रति कपड़ा धोवो सुचिता ॥८५ कांहूँ सों सपरस नहिं करिवौ, न्यारे आसन बासन धरिवौ। जो कबहूँ ताके बासन सों, छुयो राछ अथवा हाथन सों ॥८६ तो वह बासन ही तजि देवी, या विधि शुद्ध जिनाज्ञा लेवी। अन्न वस्त्र जल आदि सबैही, ताको छुऔ कछू नहिं लेही ॥८७ कोरो पीस्यो कछु नहिं गहिवी, ताको ताके ठामहिं रहिवौ। ठौर त्याग फिरवी न कितही, इह जिनवर की आज्ञा है ही ॥८८ करवी नाहीं अशन गरिष्ठा, नाहीं जु दिवसें शयन वरिष्ठा। हास कुतूहल तैल फुलेला, इन दिन माहिं न गीत न हेला ॥८९ काजल तिलक न जाकों करिवौ, नाहिं महावर महेंदो धरिवो। नख केशादि सुधार न करनों, या विधि भगवत-मारग धरनों ॥९. और त्रियन में मिलवो जाकों, पंच दिवस है वजित ताकों। चंडाली छूतें अति निद्या, भाषे जिनवर मुनिवर वंद्या ।।९१ पंच दिवस पति ढिग नहिं जावी, अर नहिं वाके सज्या रचावौ। भूमि-सयन है जोग्य जु ताको, सिंगारादि न करनों जाकों ॥९२ छट्टे दिवस न्हाय गुणवन्ती, शुभ कपड़ा पहरै बुधिवन्ती। ह पवित्र पतिजुत जिन अर्चा, कर वातै धारै शुभ चर्चा ॥९३ पूजा दान कर विधि सेती, सुभ मारग माहीं चित देती। निसि को अपने पति ढिग जावै, तो उत्तम बालक उपजावै ॥९४
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