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________________ मंगलाचरण मधु मदिरा पल जे नर गहें, ते शुभ गतितें दूरहिं रहें। नरक निगोद माहिं दुख सहें, अतुल अपार त्रासना लहे ॥८६ तातें तीन मकार धिकार, मद्य मांस मधु पाप अपार । ये तीनों औ पंच कुफला, तीन पांच ये आठों मला ॥८७ इन आठों में अगणित सा, उपजे मरण करें परवसा । जीव अनंता बहुत निगोद, तातें कृत कारित अनुमोद ॥८८ इनको त्याग किये वसु मूल गुणा होहिं अघतें प्रतिकूल । पांच उदम्बर तीन मकार. इनसे पाप न और प्रकार ||८९ बार-बार इनको धिक्कार. जो त्यागै सो धन्य विचार । इन आठनिसें चौदा और, भखै सु पावै अति दुख ठौर ॥९०॥ बहुत अभक्षनमें बाईस, मुख्य कहे त्यागें व्रतईस । ओला नाम बड़ा जु बखानि, जीव-रासि भरिया दुख-खानि ॥९१ अणछणयां जलके बंधाण, दोष करै जैसे संघाण । भखै पाप लागे अधिकाय, तातें त्याग करौ सुखदाय ।।९२ घोल बड़ा में दूषण बड़ा, खाहिं तिके जाणे अति जड़ा। दही मही में बिदल जु वस्तु, खाये सुकृत जाय समस्त ॥९३ तुरत पंचेन्द्री उपजे तहां, बिदल दही मुख में ले जहां। अन्न मसूर मूग चणकादि मोठ उड़द मट्टर तूरादि ।।९४ अर मेवा पिस्ता जु बदाम, काजू चारौली अति नाम । जिन वस्तुनि की ह द्वे दाल, सो सो सब दधि भेला टालि ॥९५ जानि निशाचर जे निशि चरें, निशि-भोजन करि भव दुख करें। ताते निशि-भोजन तजि भया, जो चाहें जिनमारग लया ॥९६ दोय मुहरत दिन जब रहै, तबतें चउबिहार वुध गहै। जौलौं जुगल मुहरत दिना, चढि है तौलौं अनसन गिना ॥९७ रात-बसौं अर रातहि कियो, रात-पिस्यौ कबहूँ नहिं लियो । जहां होय अंधेरो वीर, तहां दिवस हू असन न वीर ॥९८ दृष्टि देखि भोजन करि शुद्ध, दृष्टि देखि पग धरहु प्रबुद्ध । बहुबीजा जामें कण धणा, ते फल कुफल जिनेसुर भणा ॥९९ प्रगट तिजारा आदिक जेह, बहुबीजा त्यागौ सब तेह । बेंगण जाति सकल अघ-खानि, त्याग करौ जिन आज्ञा मानि ॥१०० संधाणा दोषीक विसेस, सो भव्या छांडो जु असेस । ताके भेद सुनो मन लाय, सुनि यामें उपजें अधिकाय ॥१०१ अत्थाणा संधाणा मथाण, तीन जाति इनकी जु बखानि । राई लूणी कलंजी आदि, अंबादिक में डारहिं वादि ॥१०२ नाखि तेल में करहिं अथाण, या सम दोष न सूत्र प्रमाण । अस जीवा तामें उपजन्त, मखियां आमिष दोष लहन्त ॥१०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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