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श्रावकाचार-संग्रह
बेपन क्रिया गाथा-गुण-वय-तव-सम-पडिमा, दाणं जलगालणं च अणथमियं । दसण णाण चरित्तं किरिया तेवण्ण सावया भणिया ॥१
चौपाई गुण कहिये अठमूल जु गुणा, वय कहिये व्रत द्वादस गुणा। तव कहिये तप बारह भेद, सम कहिये समदष्टि अमेद ॥७० पडिमा नाम प्रतिज्ञा सही, ते एकादस भेद जु लही। दाणं कहिये दान जु चार, अर जलगालण रोति विचार ||७१ निसिकों खान-पान नहिं भला, अन्न औषधी दूध न जला। रात्रि विर्षे कछु लेवी नाहि, अति हिंसा निसि-भोजन मांहिं ।।७२ कह्यो "अणत्यमिय' शब्द जु अर्थ, निसि भोजन सम नाहिं अनर्थ । दंसण णाण चरित्र जु तीन ए त्रेपन किरिया गिणि लोन ॥७३ प्रथमर्हि आठ मूलगुण कहों, गुण-परसाद विषाद न कहों। मद्य मांस मधु मोटे पाप, इन करि पावे अतुलित ताप ॥७४ बर पीपर पाकर नहिं लीन, ऊमर और कठूमर हीन । तीन पंच ए आठों वस्तु, इनको त्यागे सकल प्रशस्त ॥७५ मन-वच-काय तजो नर नारि, कृत-कारित-अनुमोद विचारि । जिनमें इनको दोष जु लगै, तिन वस्तुनितें बुधजन भगें ॥७६ अमल जाति सबही नहिं भक्ष, लगै मद्यको दोष प्रत्यक्ष । रस चलितादिक सड़िय जु वस्तु, ते सब मदिरा तुल्यउ वस्तु ॥७७ जाये खाये मन ठोक न रहै, सो सब मदिरा दूषण लहै । अर्क अनेक भांतिके जेह, खइबे में आवत है तेह ।।७८ आली वस्तु रहै दिन धना, तामें दोष लगै मदतना । अब सुनि आमिष दोष जु भया, चर्मादिक घृत तेल न लया ॥७९ हींग कदापि न खावन बुधा, बौंधौ सीधौ भखिवौ मुधा। चून चालियो चलनी चाम, नीच जाति पीस्यो हु न काम ॥८० फूल आयो धान अखान, फूल्यो साग तजो मतिवान । कन्द अथाणा माखन त्याग, हाट मिठाई तज बड़भाग ।।८१ निसि भोजन अणछण्यू नीर, आमिष तुल्य गिनें वर-वीर । निसि पोस्यो निसि रांध्यो होय, हाड़ चाम को परस्यो जोय ॥८२ मांस अहारी के घर तनी, सो सब मांस समानहिं गिनों। विकलत्रय अर तिर नर जेह, तिनको मांस रुविरमय जेह ।।८३ तजो सबै आमिष अघ-खानि, या सम पाप न और प्रमानि । त्यागो सहत जु मदिरा समा, मधु दोउको नाम निरभ्रमा ।।८४ अर जिन वस्तुनि में मधुदोष, सो सब तजह पापगण-पोष । काकिब और मुरब्बा आदि, इनहिं खाहिं तिनको व्रत वादि ॥८५
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