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किशनसिंह - कृत क्रियाकोष
दोहा किसनसिंह कवि वीनती, जिन श्रुत गुरु सों एह । मंगल निज तन सुपद लखि, मुझहि मोझ पद देह ॥९६ चौपाई
जब लों धर्म जिनेश्वर सार, जगत मांहि वरते सुखकार । तब लों विस्तारो यह ग्रन्थ, भविजन सुर- शिव-दायक पंथ ॥ ९७
इति श्री क्रियाकोष भाषा मूल त्रेपन क्रिया ते आदि दे और ग्रन्थों की साख का मूल कथन ऊपर व्रत सम्पूर्णम् ॥
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