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________________ ___ २३५ २३५ किशनसिह-कृत क्रियाकोष यातें सुनिये परम सुजान, जिन आगम भाष्यो परमान। थोड़ो किये अधिक फल देय, भाव-सहित कर सुर-पद लेय ६१ अडिल्ल जिम निज आगम को दान तिम दीजिये, निज मन युक्ति उपाय कबहु नहिं कीजिये। कलीकाल नहिं जोग संग नहिं पाइये, जास बराबर धर्म तिनहि चित लाइये ॥६२ भोजनादि निज सकति जत, दानादिक विधि सार। करि उपजावे पुण्य बहु, यामें फेर न सार ॥६३ एकासन कर धारणे, अवर पारणे जान। शील सहित प्रोषध सकल, करहु सुभवि चित आन ॥६४ मरहटा छन्द कल्याणक सारं पंच प्रकारं गरभ जनम तप णाण, पंचम निर्वाणं वरत प्रमाणं कहियो महापुराण । तिनकी विधि भाखी जिम जिन आखी किए लहै सुर गेह, अनुक्रम शिव पावै जे मन भावे ते सब जानी एह ॥६५ निर्वाण कल्यानक काबेला । चौपाई जे जे तीर्थकर निर्वाण, गए तास दिन की तिथि ठाण । तिह दिन को पहिलो उपवास, लगतो दूजो वास प्रकाश ॥६६ इह विधि बारह मास मझार, बेला करिये बीस रु चार । वेला कल्याणक निर्वाण, वरत नाम लखिये बुध माण ॥६७ लघुकल्याणक को व्रत । दोहा गरभ जनम तप ज्ञान शिव, तीर्थङ्कर चौबीस । वरस मांहि तिथि सबन की, करै एक सो बीस ॥६८ छप्पय रिषभ गरभ वदि दुतिय गर्भ छठि वासु पूज गन, आ विमल सुज्ञान दशमी नमि जनम रु तप मन । वर्धमान छठि सुकल गरभ माता के आए, सुदि सातें जिन नेमि करन हणि मोक्ष सिधाए। आसाढ़ मास माहे दिवस, छह माहे ही जांणियो, छह कल्याणक सातमो, छह जिनवर को ठाणियो ॥६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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