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श्रावकाचार-संग्रह वदि बारसि मुनि सुव्रत बखाण, सुदि पांचें मल्लि जिनेस बाण। वदि चेत मावसी नंत नाथ, अमावस अर जिन मोक्ष साथ ।।४५ सुदि पांचे शिव जिन अजित पाय, सुदि छठ संभव निर्वाण थाय । सुदि ग्यारसि सुमति सु मोक्ष धीर, नमि वदि चौदसि बैशाख तीर ॥४६ सुदि एक शिव-दिन कुंथु जाण, अभिनंदन छठ निर्वाण ठाण। वदि चौदसि जेठ सु शांतिनाथ, सुदि चौथ धर्म शिव कियो साथ ॥३७
बोहा कल्याणक निर्वाण की, तिथ चौबीस विचार । कही जेम भाषी तिसी, उत्तर पुराण मझार ॥४८ है सम्पूरण व्रत जबे, कर उद्यापन सार । आगम में जिन भाषियो, सो भवि सुन निरधार ॥४९
उखापन की विधि । चौपाई पांच कीजिये जिनवर गेह, पांच प्रतिष्ठा कर शुभ लेह । झालरि झांझ कंसाल, ताल, छत्र चमर सिंघासन सार ॥५० भामंडल पुस्तक भंडार, पंच-पंच सब कर निरधार । घंटा कलश ध्वजा पण थाल, चंद्रोपक बहु मोल विशाल ॥५१ पुस्तक पांच चैत गृह धरै, तिन बांचे भवि जन भव तरे। चार संघ को देय आहार, जिन आगम भाषी विधि सार । ५२ इतनी विधि जो करी न जाय, सकति प्रमाण करे सो आय । सकति उलंघन न करनी कहीं, सकति बान कर परहै नहीं ।।५३ काहू भांति कछू नहिं थाय, तो दूणो व्रत कर चित लाय । बब बरत करिहै नर नार, करै दान सुन हिये अवधार ॥५४ गरम कल्याणक की दत्त जान, मैदा का करि खाजा आन । बांटे सबको घर अहलाद, करे इसी विधि हर परमाद ।।५५ जनम कल्याणक दत्त विस्तरे, चिणा भिजोय रु बिरहा करे । मैदा फल घर वाटे नार, चित्त माहि अति हित अवधार ॥५६ तप कल्याणक दत्त अवधार, बाजर पापर खिचड़ी धार । बिन बागम ही बखाणी नहीं, युक्ति मान मानस विधि गही ॥५७ शान कल्याणक पूरा थाय, बबे दान दे मन चित लाय। पाठ मंगाय बांटै तिया, मन में हरष सफल निज जिया ।।५८ करके कल्याणक निर्वाण, तास दान को करे बखान ! मोतीचूर रु मगद कसार, लाडू कर बांटे सब ठार ॥५९ बीस चार घर की मरयाद, दे अति मान हिये अहलाद । मन को उकति उपावै घणी, जिन शास्त्रनि माहें नहीं भणी ॥६०
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