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किशनसिंह- कृत क्रियाकोष
चन्द्रप्रभ बारस कृष्ण पोष, ग्यारसि पास तप्यो उ पखि पौष ।
सीतल जिन वदि द्वादसीय माह, सुदि चौथ विमल तप लियहु नाह ॥३० नवमी दिन दीक्षा अजित देव, बारस अभिनन्दन सु तप भेव । तेरस जिन धर्मं तपो प्रशंस, फागुण वदि ग्यारसि श्री श्रेयांस ॥३१ प्रभु वासुपूज्य चौदस सुजान, वदि चैतर नवमी रिसहमान । सुव्रत दशमी वैशाख श्याम, सुदि पडिवा कुन्थु जिनेस ताम ||३२ सित नवमी लियो तप सुमति वीर, तिन शांति जेठ वदि चौथ धीर । बदि बारस तप जिनवर अनंत, बारस सुपार्श्व सित जेठ सन्त ||३३
दोहा
तप कल्याणक को कथन, उत्तर पुराणह माहि ।
काढ़ि कियो अब ज्ञान को, सुनिहुँ चित्त इक ठाहि ||३४
ज्ञान कल्याणक । पचड़ीछन्द
जिन नेमीश्वर पड़िवा कुंवार, संभव जिन चौथाह ज्ञान धारि । कातिक सुदि दोयज पुहपदन्त, लहि केवल बारस अर महंत ||३५ मगसिर सुदि ग्यारस मल्लि सुबोध, ग्यारस नमि हणिया कर्म जोध । शीतल वदि चोदसि पोष ज्ञान, सुदि दसमी सुमति केवल महान ||३६ सुदि ग्यारसि अजित सुबोध पाय, चौदस अभिनन्दन ज्ञान पाय । पून्यों लहि केवल धर्म वीर, श्रेयांस अमावस माघ धीर ॥३७ सुदि वासुपूज्य दोयज प्रकाश, छोठ विमल नाथ केवल विभास । फागुण बदि छट्टी सुपावं ईश, सार्ते चन्द्रप्रभु नमूँ सीश ॥ ३८ फागुण वदि ग्यारस वृषभ जान, बदि चैत चौथ पारश बखान । अमावस श्री जिनवर अनंत, सुदि तीज कुंथु केवल लहंत ॥३९ सुदि ग्यारस सुमति जु बोध पाय, पदम प्रभु पून्यों ज्ञान थाय । सुव्रत नौमी बैशाख श्याम, सुदि दसै वीर जिन बोध पाम ॥४०
दोहा
ज्ञान कल्याणक वर्णयो, उत्तर पुराण में जेम । अनिर्वाण प्रमाण तिथि, सुनहु भविक धर प्रेम ॥४१ निर्वाण कल्याणक । पद्धड़ी छन्
आसाढ विमल आठे असेत, सुदि सातें शिव नेमी सहेत । सावण सुदि सातैं पार्श्वनाथ, पून्यों श्रेयांस लहिं मोक्ष साथ ॥४२ भादों सुदि आठें पुहपदंत, जिन वासुपूज्य चौदस नमंत । सीतल जिन आसित कुमार, कातिक मावस भव वीर पार ॥४३ दि महा चतुर्दशि वृषभनाम, पद्म प्रभु फागुन चौथ श्याम । सातें सुपार्श्व शिव लहीय धीर, चंद्र प्रभु सातें त्रिजग तीर ॥४४
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