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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष तजे चकार मकार विचार, वरष एक माहें नव बार। करें वरष नवलों निरधार, उजुमण करो सकति संमार ॥१ उत्तम प्रोषध की विधि जाण, आमिल दूजी जगत वखाण। तृतीय प्रकार कह्यो इकठान, एक भुक्ति विधि चौथी जान ॥२ संयम शील सहित निरधार, वरष जु नव को इह विसतार । वरष एक में कीयो चहै, दीत याठ चालीस जु गहे ॥३ विधि वाही चहुं बार बखाण, पार्श्वनाथ जिन पूजा ठाण । कीजे उद्यापन चहँ सार, पीछे तजिए व्रत निरधार ॥४ उद्यापन की शक्ति न होय, दूणों व्रत करिये भवि लोय । सेठ नाम मति सागर जाण, त्रिया गणवती जास बखाण ॥५ तिह इह व्रत को फल पाइयो, विधि तें कथा माहिं गाइयो। इह जाणी कर भविजन करी, व्रत फल तें शिवतिय कू वरो॥६
अथ कर्म-चूर व्रत कर्म चूर व्रत की विधि एह, आठ भांति भाषत हों जेह । आठ आठ आठ में करै, चौसठि आठे पूरा परै ॥७ प्रोषध आठ करै विधि सार, इक ठाणा वसु एक ही बार । एक गास ले इक दिन मांहि, आठहि नयेड करे सक नाहिं ॥८ करहि इक फल्यो हरित तजेय, सीत दिवस तन्दुल इक लेय। लाडू तिथि इक लाडू खाय, कांजी आठ करें सुखदाय ॥९
बोहा वरष दोय बसु मास में, व्रत पूरो द्वै एह । शील सहित व्रत कीजिये, दायक सुर शिवगेह ॥१०
अथ अनस्तमित वत
चौपाई अनस्तमित व्रत विधि इम पाल, घटिका दुय रवि अथवत टालि। दिवस उदय घटिका दुय चढे, तजि आहार चहु विधि व्रत बढे ॥११ याकी कथा विशेष विचार, भाषी वेपन क्रिया मझार । याते कहीं नहीं इह ठाम, निसि भोजन तजिये अभिराम ||१२
अथ पंचकल्याणक व्रत
वोहा
व्रत कल्याणक पंचमी, प्रोषध तिथि विधि जाण । आचारज गुणभद्रकृत, उत्तर पुराण प्रमाण ॥१३ तीर्थकर चौबीस के, गरभकल्याणक सार । तिथि उपवास तणी सुनो, करिये तिस मन धार ॥१४
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