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२३.
श्रावकाचार-संग्रह
प्रोषध लगते बेलो एक, करि भविजन मन धरि सुविवेक । ता पीछेप्रोषध चहुंजान, तिनके पीछे बेलो ठान ॥९. चहुं प्रोषध बेलो चहुं वास, छट चहु अनसन पुनि छठ तास । इह विधि प्रेसठ बार विधान, चहुं प्रोषध छठ अनुक्रम जान ॥९१ वेसठ बार जु पूरण थाय, इक लगतो तेलो करवाय । बीच इकंतर असन जु करै, एक भुक्त अंतर नहीं परै ९२ इनके वेला अरु उपवास, अनसन दिवस रु तेलो जास। अरु सब दिन इकठे कर जोड़, सो सुणल्यौं भवि चित धरि कोड़॥९३ छह सौ दिबस सताण जाण, वरत दिवस मरयाद बखाण । बास इकन्तर दुइसे जाण, तिन ऊपर बावन परवान ॥९४ प्रेसठ छठ तेलो इक जान, अब सब वास जोड़ इम मान। वास इक्यासी पर सय तीन, असन तीन से सोला जान ॥८५ इह व्रत तीन भवन में सार, विधिजुत किए देवपद धार । अनुक्रम शिव जैहै तहकीक, अवधारहु व चित धरि ठीक ॥९६
अथ निर्जर पंचमी व्रत
सर्वया इकतीसा प्रथम असाढ़ सेत पंचमी को वास करे कातिकलो मास पांच प्रोषध गहीजिये । आठ परकार जिनराज पूजा भावसेती उद्यापन विधि करि सुकृत लहीजिये ॥ कीयो नागश्रिय सेठ सुता एक वरष लों सुरगति पाय विधि कथातें पाईजिये । निर्जर पंचमी को व्रत इह सुखकार भाव शुद्ध कीए दुःख को जलांजलि दीजिये ॥९७
अथ कमंनिर्जरणी व्रत दरसण के निमति चौदसि आसाढ़ सुदि, सावण की चौदस सुज्ञानकाज कीजिये । भादों सुदि चौदस को प्रोषध चारित केरो तपजोग चौदसि असौज सित लीजिये ।। एई चार प्रोषध वरष मांहि विधि सेती कर्म निर्जरनी वरत सुन लीजिये । धनश्रीय सेठ सुता करि सुरपद पायो अजों भबि भावि करिव को चित दीजिये ॥९८
अथ आदित्य वार व्रत
बोहा सुणो वरत आदित्यको, विधि भाषी है जेम । कथा प्रमाण सु कहत हों, दायक सब विधि क्षेम ॥९९
चौपाई प्रथम एक माहे आसाढ, आठई पून्यू विचि आठ। सांवण मांहि करे पुनि चार, चार वास कर भादों मझार ॥१८००
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