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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष
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ममावत
तेलो पांचे छठि सातें, सुत नौमी वास क्रियातें। ग्यारस बारस तेरस कों, प्रोषध तेलों पन्दरस कों ॥७७ उपवास आठ चालीस, तेला चहु कहे गरीस। वेला छह जिनवर भाखे, जिन आगम में इह आखे ॥७८ ए वरष एक में बास, सत्तरि दुय आगम में भास। धारणे पारणों सन्त, करिये एकन्त महन्त ॥७९ धरि शील त्रिविधि नर नारी, व्रत करहु न ढील लगारो। सुर ह अनुक्रम शिव जाई, विधिपल्यतणी इह गाई ॥८०
अथ रुक्मिणी व्रत
सर्वया इकतीसा लक्षमी मती का भव वाहिं व्रत कीनो इह श्वेत भाद्र पद आउँ प्रोषध अदाय के। दोय जाम धरणे और चार उपवास दिन पूजा रचे दोय याम पारणो बनायकें ॥८१ कीनों आठ वरष लौं शुद्ध भाव देह त्यागि अच्युत सुरेश इंद्राणी पद पायकै । भई रुक्मिणी कृष्ण वासुदेव पट तिया रुक्मिणो नाम ब्रत जाणो चित लायक ॥८२
अथ विमानपंक्ति व्रत । दोहा व्रत विमान पंकति तणे, विधि सुनिये भवि सार । मन वच क्रम करिए सही, सुर सुरेश पद धार ॥८३
अरिल्ल सौधर्म रु ईशान स्वर्ग दुई ते गही, पंच पिचोत्तर लगै पटल वेसठ कही। तिनको चहुंदिस माहि बद्ध श्रेणी जहां, जैन भवन है अनेक अकृत्रिम हो तहां ॥८४
दोहा
तिनके नाम विधान को, बरत इहे लखि सार । जहां जहां जेते पटल, सो सुनिये विस्तार ॥८५
चौपाई दुय सुर गनि इकतीस विख्यात, सनत कुमार महेंद्रहि सात । चार ब्रह्म ब्रह्मोत्तर सही, लांतव कापिष्ठ है द्वय सही ।८६ एक सुक्र महासुक्रह धार, एकहि शतार अरु सहसार । आणत प्राणत आरण तीन, अच्युत लग छह पटल प्रवीन ॥८७ नव नव ग्रैवेयक जानिये, नव नवोत्तर इक मानिये । पंच पंचोत्तर पटल जु एक, ए ग्रेसठ मुणि धरि सुविवेक ।।८८ अबै वरत प्रोषध विधि जिसी, कथा प्रमाण कहों सुनि तिसी। एक पटल प्रति प्रोषध चार, करे एकंतर चित अवधार ॥८९
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