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श्रावकाचार-संग्रह
सकल वास बेला विच जाण, बीस इकंत जु कहे वखाण । ऐसे बीस दिवस जानिए बरत मेरु पंकति मानिए ॥६२ शील सहित शुभ व्रत पालिये, हीण उदे विधि के टालिए । सुरपद पावे संशय नाहि, अनुक्रम भव लहि शिवपुर जाहि ॥६३
बोहा
वरत मेरु पंकत इहे, वरन्यो सुख-दातार ।
करहु भविक समकित - सहित, ज्यों पावे भाव पार ॥६४ पंचमेरु के बीस वन, तहाँ असी जिन गेह । तिनके व्रत की विधि सकल, पूरण कीनी एह ॥६५
अथ पल्य विधान व्रत । दोहा
सुनहु पल्य विधान व्रत, जिन आगम अनुसार । वरष बहत्तर कीजिए, बारा मास मझार ॥६६
चाल छन्द
आसोज किसन छठि तेरस, सुदि बेलो ग्यारस बारस । चौदसि सित प्रोषध धरिये, कातिक वदि बारस वरिए ॥६७ प्रोषध सुदि तीजरु बारसि, मगसिर वदि वारसु ग्यारसि । सुदि तीज अबर करि बारसि, वदि पोसह दुतिया पंदरसि ॥६८ सुदि पाँच सातें कीजे, पून्यूं को वास घरीजे ।
वदि माघ चौथ सातें गनि, चौदस उपवास धरो मनि ॥ ६९
सुदि सातें आठ बेलो, दशमी करि वास अकेलो । फागुण पाँच छठि कारी, बेलो सुणि तिथि उजियारी ॥७०
पुनि पडिवा ग्यारसि लीजे, दोनों दिन भेलो कीजे । afe पडिवा दोयज बेलो, चैत की करो इकेलो ||७१ चौथ छठि इकादस अठमी, सुदि सातें को अर दसमी । वैशाख चौथ वदि धारी, दशमी वास पुनि कारी ॥७२ सित दोयज तीज धरीजे, नौमी तेरसि दुहुँ लीजे । दसि प्रोषध तेरसि ठान, चौदस मावस तेलो जान ।७३ सुदि आठ दसमी पंदरस, उपवास करो करि मन वस । अब सांवण मधि जे वास, कहि हों भवि सुनियो तास ॥७४ छठि चौथि अष्टमी सावण, पुनि चोदसि सित तृतीया भण । बारसि तेरस को भेलो, पून्यं को वास अकेलो ॥७५ भादों वदि दोयज वास, छठि सातें वेलो तास । बारस उपवास धरीजें, सित पाखज एक करीजै ॥ ७६
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