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________________ २२७ किशनसिंह-कृत क्रियाकोष कृष्ण पक्ष की पडिवा जास, चौदह गास तणो परगास । दोयज तेरह बारह तीज, चौथ ग्यार पंचमी दस लीज ॥४५ छह नव सात आठ वखाण, आउँ सात नवमि छह जाण । दसमी पांच ग्यारसी चार, बारसि तिहुं तेरसि दुय धार ॥ चौदस दिनहि गास इक जाण, मावस दिवस पारणी ठाण । एक मास को व्रत है एह, गास लीजिये तिम सुणि लेह ॥४७ गास लैंन कों ऐसी करे, मुख में देत न करतें परे। बीच पिवो पाणी न गहाय, अतराय गल अटके थाय ॥४८ जिन पूजा विधि जुत दिन तोस, करै वन्दना गुरु नमि सोस । शास्त्र वखाण सुणे मन लाय, धरम कथा में दिवस गमाय ॥४९ पाले शील वचन मन काय, इह विधि महा पुण्य उपजाय । यात सुरपद होवै ठीक, अनुक्रम शिव पांव तहकीक ॥५० अथ मेक पंक्ति वत बरत मेरु पंकति जो नाम, तास करन विधि सुनि अभिराम । दीप अढ़ाई मध्य सुजाण, पंचमेरु जो प्रकट वखाण ॥५१ जंबूद्वीप सुदर्शन सही, विजय सु पूरब धातकी सही। अपर धातकी अचल प्रमान, प्राची पोहकर मंदर मान ॥५२ पुहकर अपर जु विद्युन्मालि, पंच मेरु वन बीस सम्हालि। तिन में असी चैत्यगृह सार, तिनके व्रत प्रोषध निरधार ॥५३ सुनहु सुदरशन भूधर जेह, भद्रसाल वन चहुँ दिसि तेह । जिन मंदिर तिह चार वखाण, प्रोषव चार इकंतर ठाण ॥५४ पाछे बैलो कीजे एक, वन सौमनस दूसरो टेक। चार जिनेश्वर भवन प्रकाश, चार वास पुनि बेलो तास ॥५५ नंदन वन जिन प्रोषध चार, पीछे ताके बेलो धार । पांडुक वन चउ जिनवर गेह, ताके चहु प्रोषध धरि एह ॥५६ पुनि बेलो धारो भवि सार, मेरु सुदरसन इह बिसतार। प्रोषध सोलह बेला चार, व्रत दिन चहु चालीस मंझार ॥५७ चार बीस उपवास वखाण, बोस जु तास पारणा जाण। ऐसे अनुक्रम करिए भव्व, पंच मेरु व्रत विधि सों सब्ब ॥५८ ध्यावत मेरु सुदरशन नाम, तेई नाम सबनि सुख धाम । वाही विधि सब वरत जुतणी, जाणों सही जिनागम भणी ॥५९ इनमें अन्तर पाडे नहीं, लगते प्रोषध बेला गही। सब प्रोषध को ऐसे जोड़, बेला बास करे चित कोड़ ॥६० बास सकल एक सौ बीस, करे पारणा सत्तर तीस । सात महीना दिन दस माहि, सकल बरत इम पूरण थाहि ॥६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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