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किशनसिंह - कृत क्रियाकोष
करिए प्रोषध तिनके भव्व, सुरपद के सुखदायक सब्ब । अनुक्रम शिव पावै तहकीक, जिनवर भाष्यो है इह ठीक ॥२१
अथ पुष्पांजलि व्रत । अडिल्ल
भादों तें वसु चैतमास परयंत ही, तिनके सित पख मैं व्रत पुष्पांजलि कही । पंचम तें उपवास पांच नवमी लगे, किये पुण्य उपजाय पाप सिगरे भनेँ ॥२२ अथवा पांच नवमी वास दुय ही करै, छठि सातैं दिन आठे तिहुं कांजी करें । छठि आ एकन्त वास तिहु कीजिए, दोय वास एकंत तिनहूँ लीजिये ॥२३ पांच वरष लौ बरत इह, करि त्रिशुद्धता धार । ता फल उतfकष्ट हूं, यामैं फेर न सार ॥२४
अथ शिवकुमार का बेला | चौपाई
शिवकुमार का बेला जान, सुनी कथा जिन कहूँ बखान । चक्रवत्ति का सुत सुखधाम, शिवकुमार है ताको नाम ||२५ घर में तप कीनो तिह सार, बेला चौसठि वर्ष मझार । त्रिया पांच से के घर मांहि, करें पारणे कांजी आहि ॥२६ पुरण आयु महेन्द्र सुर थयो, तहंतें जंबू स्वामी भयो । दीक्षा धर तपकरि शिव गयो, गुण अनंत सुख अंत न पयो ॥ २७ वर हजार एक प्रति एक, बेला चौसठि घरि सुविवेक । करे आयु लघु जानी अवै, शील सहित धारो भवि सर्वै ॥२८ लगते कारण सकति को नाहि, आठ चौदस कर सक नाहि । इनमें अंतर पाड़े नहीं, सो उत्तकिष्ट लहै सुखग्रही ॥ २९ अथ तीर्थङ्करों का वेला । दोहा
ऋषम आदि तोर्थेश के, बेला बीस रु चार । आठ चौदस कीजिए, अंतर भूर न पार ||३० चौपाई
सातै आठमि बेलो ठान, नौमी दिवस पारणों जान । तेरसि चोदसि दुय उपवास, मावस पूण्यों भोजन तास ||३१ अब पारणा की विधि जिसी, सुणो वखाणत हों मैं तिसी । बेला प्रथम पारण एह, तोन आंजली शर्वत लेह ||३२ अरु तेईस पारणा जान, तीन आंजली दूध बखान । इम बेला कीजे चौबीस, तिन तैं फल अति लहे गरीस ||३३
अथ जिनपूजा पुरंदर व्रत गीताछन्द
बरत जिन पूजा पुरंदर सुनहु भवि चित्त लाय के, बारा महीना मांझ कोई मास इक हित दायकै ।
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