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________________ १२४ Jain Education International श्रावकाचार -संग्रह बोहा कहूं पंच परमेष्ठि के, जे जे गुण सगरीस । छयालीस बसु तीस छह, अरु पचीस अडवीस ॥८ अरहंत के गुण वर्णन कहूं छियालीस गुण अरहन्त, दस अतिसय जनमत ह्वे सन्त । केवलज्ञान भये दश थाय, दुहुं की वीस दसे करवाय ॥ प्रातिहार्य को आठें आठ, चौथि चतुष्टय चहुं ए पाठ । सुरकृत अतिशय चवदह जास, चौदहस चौदसि गनिए तास ||१० सिद्ध गुणवर्णन अब सुनिए वसु सिद्धन भेद, करिए वास आठ सुणि तेह | समकित दूजो णाण बखाण, दंसण चौथो वीरज जाण ॥११ सूक्षम छट्ठो अवगाहण सही, अगुरुलघु सप्तम गुण गही । अव्याबाध आठमो धरै, इन आठों की आठें करें ॥१२ आचार्य के छत्तीस गुण आचारिज गुण जे छतीस, तिनकी विधि सुनिए निसि दीस । बारसि बारा तप दश दोय, षडावश्यकी छठि छह होय ॥ १३ पांर्चे पांच पांच आचार, दश लक्षण की दशमी धार । तीन तीज तिहुँ गुप्त जो तणी, प्रोषध ए छह तोस जो भणी ॥ १४ उपाध्याय के पच्चीस गुण गुण पचीस उवझाया जानि, चौदह पूरब कहे बखान । ग्यारा अंग प्रकाशै धीर, ए पचीस गुण लखिये वीर ॥ १५ चौदा चौदस के उपवास, ग्यारां ग्यारसि प्रोषध तास । उपाध्याय के गुण हैं जिते, वास पचीस वखाणें तिते ॥ १६ साधु के अट्ठाईस गुण साधु अठाईस गुण जाणिये, तिनि प्रोषध इनि विधि ठाणिए । पंच महाव्रत समिति जु पंच, इन्द्री विजय पंच गणि संच ॥ १७ इनकी पंद्रह पक्षे करे, षडआवसिको छठि छह धरे । भूमि सयन मञ्जन को त्याग, वसन-त्यजन कचलोंच विराग ॥१८ भोजन करे एक ही बार, ठाड़ो होइ सो लेइ अहार । करे नहीं दांतण की बात, इनि सातों को पडिवा सात ॥ १९ सब मिलि प्रोषध ए अठबीस करिहै भवि तरिहै शिव ईस । पंच परम गुरु गुण सब जोड़, सौ पर तियालीस धरि कोड ॥ २० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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