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________________ किशनसिंह - कृत क्रियाकोष चौपाई सकल पाप में व्रत लीजिए, पोड़स तिथि ताकी कीजिए । सोला पडिवा प्रोषध सार, सित मित करि पख में निरधार ॥९५ और कहूँ तिथि तिन कर तीज, चौथ चार पण पांच लीज । छह छठि सातें सात वखाणि आठे आठ नवमी नव जाणि ॥९६ बीस दसैँ ग्यारा ग्यारसी, प्रोषध करि बारा बारसी । तेरसि तेरस वास वखाणि, चौदसि चौदह प्रोषव ठाणि ॥९७ पून्यो पन्दरह करि उपबास, अमावस पन्दरह करि तास । शील सहित प्रोषध सब करे, भव भव के संचित अघ हरे ॥९८ Jain Education International ar सिंहनिःकोडित व्रत । दोहा सिंहनि: क्रीडित तप तणो, कहुँ विशेष वखाण । विधि सों कीजे भावजुत करम निरजरा ठाण ॥९९ चालछन्द प्रथम हि करि इक उपवास पुनि दोय एक तिहुं जास । दोय चारि तीन पणि कीजे, चव पाँच थापि करि दीजे ॥ १७०० चहुं पाँच तीन चहुं दोई, तिहुं एक दोय इक होई । सब वास साठि गण लीजे, तसु वीस पारणा कीजे ॥१ अस्सी दिन में व्रत एह, करि कह्यों जिनागम जेह । इह तप शिव-सुख के दायक, कीन्हों पुरब मुनि-नायक ॥२ अथ लघु चौतीसी व्रत । दोहा अतिशय लघु चौतीस व्रत, तास तणो कछु भेद । कथा - माहिं सुनियो जिसो, किये होय दुख छेद ॥३ अडिल्ल छन्द दस दसमी जनमत के अतिसय दस तणी, फिरि दस केवल ज्ञान ऊपजं दस भणी । चोदसि चौदह अतिशय देवाकृत कही, चार चतुष्टय चौथ चार इह विधि गही ॥४ षोडश आ प्रतिहार्य की बसु भणी, ज्ञान पाँच की पाँच पाँच कही गणी । अरु षष्ठी छह लही सबै प्रोषध सुनो, पाँच अधिक भवि सांठ कीए फल बहु गुणो ॥५ अथ बारासे चौतीसी को व्रत दोयज पांच आठे ग्यारस चउदसी, इनके प्रोषध करे सकल अघ जैन सी । प्रोषध सब बारह सौ अरु चौतीस ही, नाम बरत बारासे चौतीसी कही ॥६ अथ पंचपरमेष्टी का गुणव्रत । उक्तं च गाथा अरहंता याला सिद्धा अट्टेव सूरि छत्तीसा । उवझायापणवीसा साहूणं हुति अडवीसा ॥७ For Private & Personal Use Only २२३ www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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