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________________ २२२ श्रावकाचार संग्रह पुनि बेलो करिये हित जानि, बारा बास इकंतर ठानि । पाछे इक बेलो कीजिए, इक अंतर दश दुय लीजिए ॥८४ फिरि इक वेलो करि घरि प्रेम, वसु उपवास एकंतर एम । सब उपवास आठ चालीस, बिचि बेलो चहुं गहे गणीस ॥ ८५ दधिमुख रतिकरके उपवास, अंजनगिरि चहुं बेला तास । दिवस एक सो आठ मंझार, बरत यहै पूरणता धार ॥८६ छप्पन प्रोषध भवि मन आन, करे पारणा वाचन जान । लगत करें ना अंतर परे, अघ अनेक भव-संचित हरै ॥८७ अथ लघु मृदंग-मध्य व्रत । अडिल्ल दो वास फिर असन फिर तिहुं चउ करें, पांच वास धरि चार तीन दुय अनुसरे। दिवस तीस में वास कहे तेईस हैं, लघु मृदंग मघि सात पारणा जुत है ॥८८ अथ बड़ो मृदंग-मध्य व्रत । गोता छन्द उपवास इक करि दोय थापे तीन चहु पण छह घरं, पुनि सात आठ रु चढ़े नवलों फेरि वसु सात जु करें । छह पांच चार रु तीन दुय इक वास इक्यासी है, मिरदंग मघि जु नाम दीरघ पारणा सत्रह लहै ॥८९ अथ धर्मचक्र व्रत । अडिल्ल छन्द एक वास करि दोय तीन पूनि चहुँ घरे, ता पीछे करि पांच एक पुनि विस्तरे । दिन बाईस मझार बास षोडश कहे, धरम चक्र व्रत धारि पारणा छह गहे ॥ ९० बड़ी सुक्तावली व्रत एक वास दुय तीन चार पण थापई, चार तीन दुय एक धार अघ कांचई । सर्बे वास पणबीस पारणा नव गही, गुरु मुक्तावली व्रत दिवस चौतीसही ||९१ अथ भावना - पचीसी व्रत दसमी दस उपवास पंचमी पंच है, आठे बसु उपवास प्रतिपदा दुय गहै । सब प्रोषघ पच्चीस शील युत्त कीजिए, ए भावना - पचीसी बरत गहीजिए ॥९२ अथ नवनिधि व्रत Jain Education International चौदा चोदसि चौदा रतन तणी करें, नव निधि की तिथि नवमी नव प्रोषध धरे । रतनत्रय तिहुं तीज ज्ञान पण पंचमी, नवनिधि प्रोषध एक तीस करि अघ गमी ॥ ९३ अथ श्रुतज्ञान व्रत । दोहा प्रोषध व्रत श्रुत ज्ञान के, जिनवर भाषे जेम । सकल आठ ने एक सौ, बुधि सुणि भवि घर प्रेम ॥९४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001555
Book TitleSharavkachar Sangraha Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1998
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Achar, & Religion
File Size23 MB
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