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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष
अथ रतनावली व्रत । चाल छन्द रतनावलि व्रत इम करिये, प्रोषध सुदि तीजहि धरिये। पंचम अष्टम उपवास, सित पक्ष तिहूँ प्रोषध तास ।।७१ दोयज पंचम अंधियारी, आ3 प्रोषध सुखकारी। इक मास माहिं छह जानो, वरष सतरि दुय ठानों ॥७२ उद्यापन सकति समान, करिके तजिए मतिमान । दृग-जुत धरि शील धरीजै, तातें उत्तम फल लीजे ॥७३
अथ कनकावली व्रत कनकावलीय व्रत जैसे, आगम भाष्यो सुणि तैसे। सितपक्ष थकी उपवास, करिये विधि सुनिए तास ।।७४ प्रोषध सित पडिवा कीजै, पुनि वास पंचमी लीजै । सुदि दशमी पुनि होय जबहीं, वदि छठ बारस व्रत सजहीं ॥७५ छह मास मास इक माहीं, करिए भवि भाव धराहीं । उपवास बहत्तरि जास, इक वरष मध्य कर तास ॥७६
अथ मुक्तावली व्रत मुक्तावली व्रत लघु एम, करिहे भवि करि प्रेम । भादों सुदि सातें जाणों, पहिलो उपवास बखाणो ॥७७ आसोज किसन छठि तेरस, उजियारी करिये ग्यारस। कातिक वदि बारस ताम, सुदि तीज रु ग्यारस ठाम ॥७८ मगसिर वदि ग्यारसि जानो, प्रोषध सुदि तीजहि ठानो। नव नव प्रति वरष गहीजे, प्रोषध इक असी करीजे ॥७९ पूरो नव वरष मझारी, जुत शील करहु नर नारी। तातें फल पावें मोटो, मिटि है विधि उदय जु खोटो॥८०
अब मुकुटसप्तमी व्रत । बोहा सावण सुदि सप्तमी दिवस, प्रोषध को नर वाम । सात वरष तक कीजिये, मुकुट सप्तमी नाम ॥८१
अथ नंदीश्वर पंक्ति वत नंदीश्वर पंकति बरत, सुनह भविक चित लाय । किये पुण्य अति ऊपजे, भव-आताप मिटाय ॥८२
चौपाई प्रथमहि चार इकंतर बोस, करहु पछै बेलो इकतीस । ता पीछ जु एकंतर करै, द्वादश प्रोषध विधि जुत धरै ॥८३
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