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श्रावकाचार-संग्रह इकठाणी भोजन जल सबै, ले पुरसाय बार इक तबै । मूंग मोट चौला अरु चिणा, लेहि इकोण बोणी तत छिणा ॥५६ पाणी लूण थकी जो खाय, नयड नाम ताको कहवाय।। घिरत छोड़िये सब परकार, सो जाणो लूखी जु अहार ॥५७ त्रिविधि पात्र साधरमी जाण, ताहि आहार देय विधि जाण । ले मुख सोधि निरन्तर थाय, पाछै व्रत धर असन लहाय ॥५८ अंतराय हुए उपवास, करै नाम मुख सोध्यो तास । घर के लोक बुलाय कहेई, बिन जाँचे भोजन जल देई ॥५९ धरै थाल माहीं जो खाय, किरिया जैन अयाची थाय । लूण सर्वथा त्यागे जदा, भाँति अलुणा की द्वै तदा ॥६० जिन पूजा सुन शास्त्र बखान, एक गेह को करि परिमाण । जाय उडंड तास के बार, भोजन लेहु कहै नर नार ॥६१ ठाम असन जल को जो गहै, बरतमान निरमान जु कहै । बारा बरत भाँति दस दोय, अनुक्रमि सेत पक्ष भवि लोय ॥६२ समकित-सहित जु व्रत को धरै, त्रिविध शुद्ध शीलहि आचरे । करिहै पूरण वरष मंझार, सो सुर पद पावे नर नार ॥६३
___ अथ एकावली व्रत । अडिल्ल सुनहु भव्यक एकावली विधि है जिसी, सुकल प्रतिपदा पंचम अष्टम चउदसी । कृष्ण चतुरथी आठे चउदसि जाणिए; चउरासी उपवास वरष-मधि ठाणिये ॥६४ वीर्य कान्ति नृप प्रौषध विधि है तिसी, उद्यापन की रीति करी आगम जिसी। दोक्षा धरि मुनि होय घोर तप को गह्यो, केवल ज्ञान उपाय मोक्ष पदवी लह्यो ॥६५
अथ दुकावली व्रत । दोहा विधि दुकावलो बरत की, श्री जिन भाषी ताम । बेला सात जु मास में, करिए सुनि तिय नाम ॥६६
चाल छन्द पक्षि श्वेत थकी व्रत लीजै, पडिवा दोयज वृद्धि कीजे । पुनि पाँचै षष्टी जाणो, आठ नवमी छठि ठाणो ॥६७ चौदसि पुण्यो गिन लेह, बेला चहं पखि सित एह । तिथि चौथी पांचमी कारी, आठ नौमो सुविचारी ॥६८ चौदसि मावस परवीन, पखि किसन करै छठ तीन । इम सात मास इक माहीं, बारा मासहि इक ठाही ॥६९ चौरासी बेला कोजे, उद्यापन करि छांडीजे । इस व्रत ते सुर शिव पावे, सुख को तहाँ वोर न आवै ॥७०
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