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किशनसिंह-कृत क्रियाकोष
बब श्रुत-स्कन्ध व्रत श्रुत-स्कन्ध ब्रत तीन विधि, उत्तम मध्य कनिष्ट । षोड़श प्रोषध तीस दुय, वासर माहिं गरिष्ट ॥४३ दस प्रोषध दिन बीस में, मध्य सुविधि लखि लेह। वसु प्रोषध इक वास में, है कनिष्ट व्रत एह ॥४४ कथन विशेष कथा-मही, द्वादशांग के भेद । त्रिविध जिनेश्वर भाषियो, करके कर्म उछेह ।।४५
अथ जिनमुखावलोकन व्रत जिन मुखावलोकन व्रत, करिये भादों मास।। जिन मुख देखे प्रति उठि, अवर न पैखै तास ।।४६
चाल छन्द प्रोषध इक मास इकन्तर, कांजो जुत करिये निरन्तर । अथवा चन्द्रायण करिहै, लघु सकति इकन्त जू धरिहै ।।४७ संख्या धरि वस्तु जु केरी, तातें अधिक ले नहि केरी। इह वरत महा सुखदाई, चहुँ गति-भव-भ्रमण नसाई ॥४८
अब लघु सुख-संपत्ति बत सुख-संपत्ति व्रत दुय भेद, तिनको विधि भवि सुनि एव । षोड़श तिथि प्रोषध षट दश, लहुंही सुखदाय अनेकश ।।४९
बड़ा सुख-संपत्ति वत पडिवा इक दोयज दोई, तिहुँ तोज चौथ चहुँ जोई। पांचे पण छठ छह जाणो, सातें पुनि सात बखाणो ॥५० आठ के प्रोषध आठ, नवमी नव आगम पाठ। दसमी दस ग्यारस ग्यारे, वारसि के प्रोषध वारै ॥५१ तेरसि तेरा गनि लीजे, चौदसि के चौदह कीजै। पंदरसि पंदरह शिवकारी, मीसरु सो प्रोषध धारी ॥५२ इह सुख-संपत्ति व्रतनिको, भव भव सुखदायक जी को। मन वच काया शुध कीजे, भविजन नर-भवफल लीजे ॥५३
____ अथ बाराव्रत । चौपाई बारा व्रत तणी विधि जिसी, बारा भांति बखाणो तिसी। प्रोषध कीजे बारा भाँति, अरु बारा ही करिए एकन्त ॥५४ वारा कांजी तंदुल लेय, निगोरसे गोररस तजि देय । अलप अहार असन इक भाग, लेहै करिहै दुय बट भाग ॥५५
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