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श्रावकाचार संग्रह
चारुछन्द
तिरयंचणि सुर तिय नारि, चौथी विनु चेतन सारि । पंचन्द्रनिते चहुं गुणिए, तिनि संख्या बीसज मुणिये ॥३१ मन वच तन तें ते वीस, गुणते ह्वे तीस रु तीस । कृत कारित अनुमोदन ते, गुणिए पुनि साठहि गनते ॥ ३२ एक सौ असी हुई जोई, प्रोषध करु भवि घरि सोई । इक वरष मांहि निरधार, करिए पूरण सब व्रत सार ||३३ इक दिन उपवास जु कीजे, दूजी दिन असन जु लीजे । तीजे दिन फिर उपवास, इम करहु इकंतर तास ॥३४ एक सो अस्सी एकंत, इतने ही बास करंत । दिन साढ़े तीन से धीर, पालै निति शील गहीर ॥ ३५ इह शील कल्याणक नाम, व्रत है बहुविधि सुख-धाम ।
चक्री काम कुमार, हरि प्रति हरि बल अवतार ||३६ तीर्थंकर पदवी पावे, समकित जुत व्रत जो ध्यावे । ऐसें लखि जं भवि जांण, करिए व्रत शील कल्याण ||३७ अथ शीलव्रत । चालछन्द
अब सुनहु शील व्रत सार, जंसो आगम निरधार । वैशाख सुकल छठि लीजे, प्रोषध उपवास करोजे ॥ ३८ अभिनन्दन जिनवर मोषं, कल्याणक दिन शिव पोषं । शुभ शीलवरत तसु नाम, करि पंच वरष सुखधाम ॥३९ अथ नक्षत्रमाला व्रत । गोताछन्द
अश्विनी नक्षत्र की जु वासर च्यार अधिक पंचास ही, तिहि मध्य एकासन सताईस बीस सात उपवास ही । जुत शील मन वच तन त्रिशुद्धहि कर विवेकी चाव स्यों, माला नक्षत्र सुनाम व्रत तैं छूटिये विधि-दाव स्यों ॥४०
अथ सर्वार्थसिद्धि व्रत
कातिक सुकल अष्टम दिवस तें अष्ट वास कीजिए, तसु आदि अंत इकंत दस दिन सील सहित गनीजिए । जिनराज श्रुत गुरु पूज उत्सव सहित नृत्यादिक करै, सर्वार्थसिद्धि जु नाम व्रत इह मोक्ष सुख कों अनुसरे ॥४१
अथ तीन चोविसी व्रत । दोहा
व्रत चौबीसी तीन को, सुकल भाद्रपद तीज । प्रोषध कीजे शील जुत, सुर-सुख शिव को बोज ॥४२
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