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किशनसिंह - कृत क्रियाकोष अथ त्रेपन क्रिया व्रत
त्रेपन किरिया की विधि जिसी, सुणिए बुध भाषी जिन तिसी । आठ मूल गुण तणी, पाँचै पाल अणुव्रत भणी ॥१७ तीन तीन गुणव्रत की धार, शिक्षाव्रत की चौथ जु सार । तप बारह की बारसि जानि, तिसका प्रोषध बारह ठान ॥ १८ सामि भाव की पड़िवा एक, ग्यारसि प्रतिमा की दश एक । चौथ चार चहुं दानहि तणी, पड़िवा एक जल-गालन भणी ॥१९ अथमीय पड़िवा अघ- रोध, तीनहुं तीज चरण हग बोध । ए त्रेपन प्रोषध जे करै, शील-सहित तप को अनुसरें ||२० सो नर तिय सुर-नृप-सुख पाय, अनुक्रमते शिव-थान लहाय । उद्यापन विधि करिए सार, सकति जेम हीननि विस्तार ॥२१
अथ जिनेंद्र गुण संपत्ति व्रत । चालछन्द
जिनगुण संपत्ति व्रत धार, सुनिए तिनकों अवधार । दस अतिसै जिन जनमत ही, लीये उपजे लखि सति ही ॥२२ उपज्यो जब केवल ज्ञान, दस अतिसे प्रगटे जान । इ अतिसय बीस जुकरी, करि बीस दसे सुखवरी ॥२३ देवाकृत अतिसय जांणो, चौदस चौदह तिह ठांणो । वसु प्रातिहार्य जिन देव, बसु आठें करिए एव ॥२४ भावन सोलह कारण की, पड़िमा षोडश करि नीकी । पाँचों कल्याणक जाकी, पाँचों पाँचे करि ताकी ॥२५ प्रोषध ए सठि जाणो, जुत सील भविक जन ठांणो । उत्तम सुर-नर सुख पावै, अनुक्रमते शिव पहुँचावै ॥ २६
अथ पंचमी व्रत | चौपाई
फागुण आसाढ कातिक एह, सित पंचमि तें व्रत को लेह । पैंसठ प्रोषध करिए तास, वरष पाँच पाँच परि मास ॥२७ श्वेत पंचमी को व्रत धार, कमलश्री पायो फल सार । भविसदत्त तब मिलियो आय, तिनहूँ व्रत कीनो मन लाय ॥२८ तास चरित माहे विसतार, बरनन कीयो सब निरधार । अजहुँ नरतिय करिहै सोय, त्रिविध सुधी तैसों फल होय ॥२९
अथ शीलकल्याणक व्रत । दोहा
शील कल्याणक व्रत तणो, भेद सुनो जे संत ! नवच काय त्रिशुद्धि करि, धारौ भवि हरषंत ॥
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