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थावकापार-संग्रह
बब बाकास पंचमी व्रत । चौपाई भादव सुदि पंचमि उपवास, करे व्रत पंचमि आकाश ।। वरष पंच मरयादा जास, शील सहित प्रोषध परि तास ॥५
वसाय बनमी व्रत श्रावण सुदि दशमी कों सही, अक्षय दशमि व्रत कों जन गही। प्रोषध करे शील जुत सार, तसु मरयाद वरष दश धार ॥६
बबचंदन पष्ठो बत भादव बदि छठि दिन उपवास, चंदन षष्ठी व्रत-धर तास । मन वच काय शील व्रत पाल, तसु परमाण वरष छह धार ॥७
अब निर्दोष सप्तमी व्रत भादों सुदि सातें निर्दोष, वरत करै प्रोषध शुभ कोष । संख्या सात वरष लों जाहि, उद्यापन करि तजिए ताहि ।।८
बब सुगंध दशमो व्रत व्रत सुगन्ध दशमी को जान, भादों सुदि दशमी दिन ठान । प्रोषध करे वरष दश सही, शील सहित मर्यादा गही ।।९ अष्ट द्रव्य सों पूजा करे, धूप विशेष खबे अघ हरे । धीवर-सुता हुंती दुरगंध, ब्रत-फल तस तन भयो सुगन्ध ।।१०
श्रवण द्वादसी व्रत भादों सुदी द्वादशि व्रत नाम, श्रवण द्वादशी जो अभिराम । बारह वरष लगे जो करे, शील सहित प्रोषध अनुसरे ॥११
अथ अनन्त चतुर्दशी व्रत . भादों सुदि चौदस दिन जानि, व्रत अनंत चौदसि को ठानि । तीर्थकर चौदही अनंत, रचे पूज सों जीव महंत ॥१२ प्रोषध करे शील जुत सार, चौदह वरष लगे निरधार । उद्यापन विधि करि वह तजे, सो जन स्वर्ग-तणा सुख भजे ॥१३
बब नवकार पैतिस व्रत । चौपाई अपराजित मंत्र नवकार, अक्षर तसु पैतीस विचार । करि उपवास वरण परमानि, सातें सात करो बुध मानि ॥१४ पुनि चौदा चौदसि गनि सांच, पाँचै तिथि के प्रोषध पांच । नवमी नव करिये भवि संत, सब प्रोषध पैंतीस गणंत ॥१५ पैंतीसी नवकार जु एह, जाप्य मन्त्र नवकार जपेह ।। मन वच तन नर नारी करे, सुर नर सुख लहि शिव तिय बरे ॥१६
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