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किशनसिंह - कृत क्रियाकोष
अथ अक्षयनिधि व्रत । चोपाई
व्रत अक्षयनिधि को उपवास, श्रावण सुदि दशमी करि-तास । भादों बदि जब दशमी होय, तिनहूँ के प्रोषध अवलोय ॥ ९३ अवर सकल एकंत जु धरें, सो दश वर्षह पूरो करे । उद्यापन करि छाड़ें ताहि, नांतर दुगुणो करिहै जांहि ॥९४ अथ मेघमाला व्रत | चौपाई
बरत मेघमाला तसु नाम, भादव मास करे सुखधाम । प्रोषध परिवा तीन बखान, आठें दुहुँ चौदस दुहुं जान ॥ ९५ सात वास चोईस इकंत, त्रिविधि शील जुत करिए संत । वरष पाँच लों तसु मरयाद, सुर-सुख पावे जुत अहलाद ||९६ || अथ जेष्ठ जिनवर व्रत। चौपाई
वरत जेष्ठ जिनवर भवि लोइ, ज्येष्ठ मास में करिये सोय । किशन पक्ष पड़वा उपवास, एकासण चौदा पुनि तास ॥९७ प्रोषध शुक्ल प्रतिपदा करें, पुनि एकन्त चतुर्दश धरै । ज्येष्ठमास के दिवस जु तीस, तास सहित व्रत करे गरीस ॥९८ बृषभनाथ जिन पूजा रचे, गीत नृत्य वाजित्र सुसबै । अति उछाह धरि हिये मझार, मरयादा लखि कथा विचार ॥ ९९
अथ षट्सीव्रत । अडिल्ल
दूध दही घृत तेल लूण मीठी सही, तजे पाख दोय दोय सकल संख्या कही ।
करे असन इक वार व्रती इम व्रत सजे, पख वारह मरयाद षट्रसी व्रत भजे ॥१६००
अथ पाख्या व्रत
दीत ससि हरी मंगल मीठो हरै, घिरत बुद्ध गुरु दही दूध भृगु परिहरै । तेल तेल सनि इहै. वरत पाण्या गहै, मरयादा जिम नेम धरे जिम निरवहै ॥१
अथ ज्ञानपचीसी उपवास लिख्यते
प्रोषध चौदह चौदस के विधि जुत करे, तैसें ग्यारा ग्यारस के प्रोषध घरे । सब उपवास पचीस शील व्रत जुत धरे, ज्ञान पचीसी व्रत जिनागम इम कहे ॥२
अथ सुखकरण व्रत
एक वास एकंत एक अनुक्रम करें, मास चार पख एक इकन्तर इम घरें ।
देव शास्त्र गुरु पूज सधैं व्रत घरि सदा, नाम तास सुख-करण हरण दुख जिन वदा ||३
अथ समवशरण व्रत । दोहा
श्वेत किशन चौदसि तणी, प्रोषघ बीस रु चार ।
शील-सहित भविजन करें, समोशरण व्रत धार ॥४
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