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श्रावकाचार-संग्रह
कति नहीं उद्यापन-तणी, करे दुगुण व्रत श्री जिन भणी । दश लक्षण याही परकार, उत्कृष्टी दश वासहि धार ॥७६ दूजी विधि छह वासह तणी, करे इकन्तर भाष्यो गणी । मरयादा दश वरषहि बान, वरष मद्धि तिहुं बारहि ठान ॥७७ अवर सकल विधि करिहै जिती, संबर माहि जानिये तिती । रत्नत्रय की विधि ए सही, वरषावधि तिहुँ बारह कही ॥७८ भादौं माघ चैत पखि सेत, बारसि करि एकन्त सुहेत । पोसह सकति प्रमाण जु घरे, अति उच्छाहते तेलो करे ॥७९ पडिवा दिन करिहै एकन्त, पंच दिवस घरि सोल महंत । बरस तीन मरयादा गहै, उद्यापन करि पुनि निरबहै ॥८० सकति-हीन जो नर तिय होय, संबर दिवस न छांड़े सोय । बाको फल पायो सो भणौ, नृप वैश्रवण विदेहा तणो ॥८१ मल्लिनाथ तीर्थंकर होय, ताके पद पूजित तिहुँ लोय । बाल ब्रह्मचारी तप कियो, केवल पाय मुकति पद लियो ॥८२ अजहूं जे या व्रत को घरे, दरसन त्रिविधि शुद्धता करे । ताको फल शिव है तहकीक, श्री जिन आगम भाष्यो ठीक ॥८३
बच सम्धि विधान व्रत । चोपाई
भादौं माघ चैत विघ जान, वदि पंदरसि एकन्तहि ठान । पाडवा दोयज तीज प्रवान, थापे तेला करि विधि जान ||८४ सकति प्रमाण जु पोसह घरे, चौथ दिवस एकासण करें । पांची दिवस सोलको पाल, तीन बरस व्रत करहि सम्हाल ॥ ८५ पुत्री तीन कुटुम्बी तणी, जिन व्रत लियो एम मुनि भणी । विधिवत करि उद्यापन कियो, तियपद छेदि देवपद लियो ॥८६ वह द्विज-सुत पंडित नाम, गौतम भर्ग रु भागं रु नाम । महावीर के गणधर भए, तिनके नाम इन्द्र ए दिए ॥८७ इन्द्रभूति गौतम को नाम, अग्निभूत दूजो अभिराम । वायुभूत तीजे को सही, वरत तणो तीनों फल लही ॥८८ इन्द्रभूत तदभव शिव गयो, दुहूं तिहूं उत्तम पद को लयो । याते ते नवि परम सुजान, करो वरत पावो सुखथान ॥८९ दूजी विधि आगम इम कहे, पडिवा तीजह प्रोषध गहे । दोयज दिवस करे एकन्त, इस मरयाद वरष छह सन्त ॥९० परिवा तीज एकान्त करेय, दोयज को उपवास धरेय । मयादा भाषी नव वर्ष, करिये भवि मन में घरि हर्ष ॥९१ पंच दिवस लों पाले शील, सुरगादिक सुख पावे लोल । पुनि उत्तम नर पदवी लहे, दीक्षा घर शिव-तिय-कर है ॥९२
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