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श्रावकाचार संग्रह
व्रत करन की है विधि जिसी, जिन आगम में भाषी तिसी । तीन बार इक बरष मंझार आसाढ़ कातिक फागुण धार ॥४४ जो उत्तक्रिष्ट बरत को करें, आठ-आठ उपवास जु धरै । जो भेद कोमली जॉन, जिन मारग में करो बखान ॥४५ आठ दिन कीजे उपवास, नौमी एक भुक्त परकास । दसमी दिन कांजी करि सार, पाणी भात एक ही बार ॥४६ ग्यारस अल्प असन कीजिए, दुयवट तजि इकवट लीजिए। मुख सोध्यो वारस विधि एह, त्रिविधि पात्रकों भोजन देय ॥४७ अंतराय तिनकों नहि थाय, तो वह व्रत धरि असन लहाय । अंतराय तिनिकों जो परे, तो उस दिन उपवास हि करे ||४८ तेरस दिन आँविल कीजिए, ताकी विधि भवि सुन लीजिए । एक अन्न षटरस बिनु जानि, जल में मूँ कि लेइ इक ठाँनि ॥४९ चउदस चित्त वेलडी थाय, भात नीर जुत मिरच लहाय । पूरणवासी को उपवास, किए होय चिर को अघ नास ॥ ५० इह कोमली की विधि कहीं, जिन आगम में जैसी लही । आदि अंत करिए एकंत, दस दिन धरिये शील महंत ॥५१ जाके जिम चउदस उपवास, चौदस पंदरस वेलो तास । तेरस आंबिल के दिन जेह, रहित विवेक आँवली लेह ॥५२ सदा सरद जाकी नहि जाय, उपजै जीव न संसे थाय । चउदस दिवस बेलडी करे, तादिन इम अनीति विसतरे ॥ ५३ affह खलरा अर काचरी, तथा तोरई निज मतही । तिनमें उपजे जीव अपार, सो व्रत जिन लेवो नहि सार ॥५४
दोहा
कांजी के दिन नीर में, नाखि कसेलो लेह | तंदुल जल विनु अवर कछु, द्रव्य न भाषो जेह ॥५५
चौपाई
विधि जु आठई जान, आठें तें चउदसहि बखान । बारस असन छें तिहुँ बास, इहै भेद लखि पुण्य निवास ॥५६ दशमी तेरस जीमण होइ, बेला तीन करहु भवि लोय । चौथो भेद यहै जानिए, शीलव्रत ताको ठानिये ॥५७ आठ दशमी बारस तीन, प्रोषध धरिये भाव प्रवीन । चउदस पंदरस बेलो करे, पंचम विधि बुधजन उच्चरे ॥५८ आ ग्यारस चौदस जान, तीन दिवस उपवास बखान । अथवा दोय करे नर कोय, एकासन पण छइ दिन जोय ॥५९
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