________________
किशनसिंह-कृत क्रियाकोष
२११ तिय चैत्यालय ते बावे, इक थाली आय उठावें। जो बसन उभारे तीय, भोजन करि जल बहु पीय ॥३१ बल थाल उघाड़े आयी, जल पीवे बैठि रहाही। इम बरत करम पति बन्यो, सूत्रनि में नबी बखान्यो ॥३२ इत्यादि कहालों ठीक, बागम ते अधिक अलीक । करिके शुभफल को चाहे, हियरे तिय अधिक उमाहै ॥३३ जो कलपित बरत बु मान, भाषे तेते अघवान। जो सकल वस्तु ले आवै, निज पूजा माहिं चढ़ावै ॥३४ निज सगपन गेह मिलाय, बांट पर घर फिरि आय । भादों के मास बु माहीं, तप करन सकति ह नाहीं ॥३५ इम कहि एकन्त कराही, जिन-उक्त व्रत सो नाही। बांटे जो वस्तु मंगाई, सोई व्रत नाम धराई॥३६ जिनमत व्रत बिनु मरयाद, करिये मन उक्त प्रमाद । जिन सूत्रनि में जैनी है, सुखदायक व्रत आही है ।।३७ जिन आज्ञा को जे गोपे, ते निज कृत सब शुभ लोपे। यातें सुनिये नरनारी, मन में तिस ते अवधारी ।।३८ जिन-भाषित जे व्रत कोजे, उक्त न कबहूं लोजे । बाज्ञा विधिजुत व्रत धार, सुरपद पावे निरधार ॥३९
सवैया ३१॥ वेपन क्रिया ने आदि देके नाना भेद भांति क्रिया को कथन साखि अन्धन की बानिक। अवर मिथ्यात कलिकाल मई थापना बे तिनको निषेध कीयो बागम तें जानिके। व्रत मन उकति सुगम जानि चालि पर कहै नहिं नते जिते दुःख वृथा मानिके। अब नर नारी मन लाय जो वरत धरै यहि समय शील तप व्रत जीय सानिकै ४०
छप्पया बहुविधि क्रिया प्रसंग कही इह कथा मझारी, अब उछाह मन मांहि बानि इह बात विचारी। क्रिया सफल जब होइ वरत विधि यामें बाए, मन्दिर शोभा जेम शिखर पर कलश चढ़ाए। इह जान वास व्रत विधिनि की, सुनी जेम आगम भनी, दरशन विशुद्ध चुत धरह भवि इह विनती किसना-तनी ४१
चाल छन्द समकित जुत व्रत सुखदाई, अनुक्रम ते शिव पहुंचाई। कछु नाम वरत के कहिए, भवि जन जे जे व्रत गहिए ।।४२
अथ अष्टाह्निक व्रत कथन । चौपाई अष्टाह्निक महाव्रत सार, रहै अनादि जाको नहिं पार। जो उत्कृष्ट भए नर तेह, तिन पूरव व्रत कीन्हो एह ।।४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org