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श्रावकाचार संग्रह
बोहा श्री जिन आगम में कहे, वरत एक सौ आठ। श्रावक को करणे सही, इह सब जागा पाठ ॥१४ इनि सिवाय विपरीति अति, चलण थापियो मूढ । सुगम जाणि सो चलि पडयो, सुणहु विशेष अगूढ ॥१५
वनिता लखिकै लघु वेस, तिनिको इम दे उपदेस । दिन में जीमो दुय बार, जल की संख्या नहिं धार ॥१६ एकंत वरत धरि नाम, आगमि न बखांण्यो ताम । खखल्यो एकंत करांही, सिर-खंड सुनाम घरांही ॥१७ तंदुल केसर दधि मांही, करि गोली वरत कहांही। टीको व्रत नाम सुलेई, वनिता सिर टीकी देई ॥१८ अरु तिलक वरत को धारै, बहु तिय सिर तिलक निकारै । करि देइ टको इक रोक, लेहै तिनके अघ कोष ॥१९ कोथलीय व्रत धर नाम, बांट तिन तीसहि ठाम । मधि सोंठ मिरच धरि रोक, प्रभुताह भाषे लोक ॥२० अर व रत खोपरा भाषे, एकन्त तीस अभिलाषे ।।२१ नारेल वरत. को लेह, बाँटै घर घर धरि नेह ।। खीर जु व्रत नाम धरावे, निज घर जो दूध मंगावै ॥२२ चावल ता माही डारी, निपजावे खीर जु नारी। भरि ताहि कचोला माहीं, बाँटै बहु घरि हरषाहीं ॥२३ काचली व्रत तिय धरि है, कांचली दस बीस जु करि है। निज सगपण कीजे नारी, तिनको दे हेत विचारी ॥२४ तिन पहिरे जूं उपजाही, त्रस-घात पाप अधिकाहीं। जिनको व्रत नाम धरावं, सो कैसे शुभ फल पावै ॥२५ व्रत करि घृत नाम बखानो, घृत दे घर घर मन आनो । बांटत माखी तहँ परिहै, उपजाय पाप दुःख भरिहै ॥२६ चूड़ा व्रत नाम धराही, करिके मन में हरषाई । बांटत मन धरि अति राग, इसते मुझ बढ़े सुहाग ॥२७ बिन न्योतो पर घर जाई, निज करते असन गहाई। भोजन कर निज घर आवे, व्रत नाम धिगानो पावै ।।२८ भरि खांड रकेबी तीस, बांटै ते घर दस बीस । व्रत नाम रकेबी तास, करिहै मूरखता जास ।।२९ बनिता चैत्यालय जाही, पाछे विधि एम कराही । धरि अशन थाल इक माहीं, इक जल दुहुँ टाक धराहीं ॥३०
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