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किशनसिंह- कृत क्रियाकोष
कछू त्रिवरणाचारतें, जो धरिवे को जोग ।
सुणी ते भाषी तहां, चाहिए तिसो नियोग ॥९९ कछू श्रावकाचार तैं, नियम आदि बहु ठाम । कहीं जेम तस चाहिए, घरी भाष अभिराम ॥१५०० बगत मांहि मिथ्यातकी, भई थापना जोर । क्रिया हीण तामें चलन, दायक नरक अघोर ॥१ ताहि निषेधनको कथन, सुन्यो जिनागम जेह । जिसो बुधि अवकास मुझ, भाषा रची में एह ॥२ मूलाचार थकी लिखी, सूतक विधि विस्तार । श्लोक संस्कृत ऊपरे, भाषा कीनी सार ॥३ विद्यानुवाद पूरब थकी, भद्रबाहु मुनिराय । कथन कियो ग्रहशान्ति को, तिह परिभाष वनाय ॥४ निज तन निति प्रति की क्रिया, अरु पूजा परबंध । श्लोकनि परिभाषा धरी, जहं जैसो सम्बन्ध ॥५
भुजंगप्रयात छन्द
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कथा में कह्यो पंचेन्द्रो निरोधं कथा में कह्यो पंच पापं विरोधं । कथा में मध्य बाईस भाषे अभक्षं, कथा में कह्यो गोरसं भेद भक्षं । कथा मध्य कांजी निषेधी प्रत्यक्षं, कथा में कह्यो मुरब्बादि लक्षं ॥६ कथा मध्य मूलं गुणं अष्ट भेदं कथा मध्य रत्नत्रयं कर्म खेदं । कथा मध्य शिक्षा व्रतं भेद चारं, कथा मध्य तीन्यो गुणावत्तंधारं ॥ ७ कथा मध्य भाषी प्रतिज्ञा सु ग्यारा, मध्य भाषे तपो भेद वारा । कथा मध्य भाषै बहुदान सारं, कथा मध्य भाषे निशाहार ढारं ॥८ कथा मध्य संलेषणा भेद भाख्यो, कथा मध्य सुद्धं समं भाव आख्यो । कथा मध्य पानी क्रिया को विशेषं, कथा मध्य त्यागी कह्यो राग द्वेषं ॥१९ कथा में कह्यो नेम सत्रा प्रमाणं, कथा में क्रिया जोषिता धर्म जाणं । कथा में कही मौन सप्तं निकायं कथा मध्य भाषे जिके अन्तरायं ॥ १० कथा मध्य भाषी ग्रहा की जु शांति, कथा में कह्यो सूतकं दोइ भांति । कथा मध्य देही क्रिया को प्रमाणं, कथा मध्य पूजा विधानं बखानं ॥११
बोहा
hot काल कारण लही, जगत मांहि अधिकार । प्रगटी क्रिया मिथ्यात की, हीणाचार अपार ॥१२ तिनहि निषेधन को कथन, सुन्यो जिनागम माहि । ता अनुसारि कथा महै, कह्यो जथारथ आहि ॥ १३ अथ मनोक्त व्रत निषेध कथन लिख्यते ।
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