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३.८
श्रावकाचार संग्रह
निज घर को माल रखीजे, पद परि पद धरि बैठीज। कोऊ भयतें जाय छिपीजै, काहू दुख दूर न करीजै ।।८४
चौपाई कपड़ा धोवै धूपति देई, गहणारा व घडावै लोई। ले असलाख जंभाई छोंक, केस संवारि कर तिन ठीक ।।८५ धोवै दालि वडी दै जहाँ, पापड़ सोंज बणावै तहाँ । मैदा छानन छपर बंधान, करन कढाई तें पकवान ॥८६ राज असन तिय तसकर तणी, चारोंविकथा को भाखणी। करण सीधादिक सीवणो, कर नासिका कौं वीधणो ||८७ पंछी डारि पिंजरो धरै, अगनि जारि तन तापन करै। सुवरण रज तप हर ही जोई, छत्र चमर सिर धारै कोई ॥८८ वंदन आवै कै असवार, पुनि तनको धारै हथियार । तेल अर गजादिक मिलवाय, बैठ करै पसारै पाय ||८९ बांधै पाग पेंच फुनि देई, आवै तुररादिक ढाकेय । जूवा खेलै होड बदेय, निद्रा आवै शयन करेय ॥९० मैथुन करै तथा तिसवात, चालै झोग शरीर खुजात । बात करण व्यापार हि तणी, चौपाई परि बैठ न गिणी ॥९१ पान द्रव्य ले जेहै जोय, जलतै क्रीडा करिहै कोय । सबद जहार परसपर करै, गांड प्रमख खेलि चित धरै ॥९२ जिन मंदिर परवेस जो करै, सवद निसही न वि ऊचरै । पुनि कर जोड़े विनु जो जोय, ए दोन्यौं आसादन थाय ॥९३ ए चौरासी अघ कर क्रिया, करनी उचित नहीं नर त्रिया । जिन मन्दिर श्रुत गुरु लखि जांनि, रहनौ अधिक विनय उर आंनि ॥९४
दोहा किसनसिंघ विनती करे, सुनौ भविक चित आनि । क्रिया हीण जिन-ग्रहि तजो, सजो उचित सुखदान ॥९५
इति पूजा विधि-आसातना वर्णन संपूर्णम् । अथवा त्रेपन क्रिया तथा अवर क्रिया को वर्णन कीयो तिण को मूल कथन ।
दोहा वेपन किरिया की कथा, लिखी संस्कृत जेह।। गौतम-कृत पुस्तक महै, मंडो नाम सुनि एह ।।९६ ता उपरि भाषा रची, विविध छंदमय ठांनि । श्रावक को करनी किरिया, किरिया कही बखान ॥९७ अतीचार द्वादश वरत, लगे तिहि निरधार । सूत्रनिमैतें पाय के, करी भाष विस्तार ।।९८
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