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किशनसिंह- कृत क्रियाकोष
निसि सोवन को सेज्या-थान, पलंग करें दक्षिण सिरहान ।
अरु पश्चिम दिसहू सिर करें, उठत दुहुं दिसि निज रिजु परै ।।१५ पूरव अरु उत्तर दुहुं जाणि, उत्तम उठिए हरषहि ठाणि । इह विधि क्रिया अहो निसि करें, सो किरिया विधि को अनुसरे || १६ इति तन-संबंधी क्रिया ।
अथ जाप्य पूजा की विधि लिख्यते
चौपाई
जाप-करण पूजा की बार, जो भाषी किरिया निरधार । ताको वरणन भवि सुन लेह, श्लोकनि में वरणी है जेह ॥ १७ पूरब दिसि मुख करि बुधिवान, जाप करें मन वच तन जानि । जो पूरब कदाचिरिजाय, उत्तर संमुख करि चितलाय ॥ १८ दक्षिण पश्चिम दुहु दिसि जथा, जाप करन वरजी सरवथा । तीन सास- उसास मझारि, जाप करें नवकार विचारि ॥ १९ प्रथम जाप अक्षर पैंतोस, दूजी सोलह वरण बत्तीस । तृतीय अंक छह अरहंत सिद्ध, असि आ उ सा तुरी परसिद्ध || २० पंच वरण च्यारि अरहंत, षष्ठम दुय जपि सिद्ध महंत ।
वरण एक जोवों ऊंकार, जाप सताईस जपिए सार ॥ २१
कही द्रव्यसंग्रह में एह, सात जाप लखि तजि संदेह । और जाप गुरु-मुख सुनि वाणि, तेऊ जपिए निज हित जानि ||२२ मेरु बिना मणिया सौ आठ, जाप तणा जिन मत इह पाठ । स्फटिक मणि अरु मोती माल, सुवरण रूपो सुरंग प्रवाल ॥ २३ जीवा पोतारे सम जाणि, कमल-गटा अरु सूत बखान । ए नौ भाँति जाप के भेद, भाव-सहित जपि तजि मन खेद || २४
दोहा
दिसि विशेष तिनिको कह्यौ, जिन मंदिर बिनु थान । चैत्यालय में जाप करि, सन्मुख श्री भगवान् ।। २५
चौपाई
पूजा निमित्त स्नान आचरै, सो पूरव दिसि को मुख करे । धौत वस्त्र पहिरै तनि तबै उत्तर दिसि मुख करिहै जबै ॥ २६ उक्तं च श्लोक
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स्नानं पूर्वामुखी भूप, प्रतीच्यां दन्त-धावनम् । उदीच्यां श्वेतवस्त्राणि, पूजा पूर्वोत्तरामुखी ॥२७
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२०३
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